गाजीपुर ,जमानियां। शबे बरात के मौके पर मुस्लिम बन्धु मजारों सहित अपने कब्रिस्तानों पर जाकर दुआ मांगते है। तथा पूरी रात मस्जिद व घरों में नमाज पढ़कर अल्लाह से गुनाहों की माफी मांगते हैं। इस दौरान घरों की महिलाएं लजीज पकवान जैसे, पकवान चना की हलवा, सूजी का हलवा, गरी का हलवा आदि व्यंजन बनाया जाता है। और इबादत के बाद गरीबों में बनाया हुआ व्यंजन बांटा जाता है। शब का अर्थ है। रात और बारात यानी बरी होना। इस आधार पर शब-ए-बारात गुनाहों की माफी मांगने और अल्लाह की इबादत कर अपने पापों को दूर करने की रात कहा गया है। शबे ए-बारात हर्षोल्लास के साथ मुल्क में मनाया जाता है। मुस्लिम बन्धु दिन का बेसब्री से इंतजार करते है। बता दें कि मुस्लिम समुदाय में मान्यता है कि इस दिन की गई इबादत का सबाब बहुत ज्यादा होता है। और माह -ए-शाबान को बेहद पाक और मुबारक महीना माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन की गई इबादत में इतनी ताकत होती है। कि वो किसी भी तरह के गुनाहों से माफी दिलाती है। शाबान का चांद नजर आया था। सुन्नी मुसलमानों मानते ​​हैं। कि इस पाक दिन अल्लाह ने नूह (ईसाई धर्म में नूह) के संदूक को बाढ़ से बचाया था. वहीं शिया मुसलमानों के 12वें इमाम मुहम्मद अल महदी की पैदाइश शाबान की 15 तारीख को मानते हैं. इस्लाम धर्म के अनुयायी के लिए ये त्योहार बहुत अहम होता है। शाही जामा मस्जिद के सेकेट्री मौलाना तनवीर रजा सिद्दीकी ने बताया कि इसे शब ए बारात या शबे बारात के नाम से भी जाना जाता है। हर साल शब-ए-बारात शाबान महीने की 15वीं तारीख की रात को मनाई जाती है। इस दिन शब ए बारात की खास  नमाज भी पढ़ी जाती है। उन्होंने कहा कि सही लफ्जों  में शब और बारात से मिलकर शब-ए-बारात बना है. शब से मतलब रात से है और बारात का मतलब बरी यानी बरी वाली रात से है. सऊदी अरब में शब-ए-बारात को लैलतुल बराह या लैलतुन निसफे मीन शाबान कहते हैं। मौलाना रजा ने कहा कि शब-ए बारात की रात ऐसी रात है जो सभी गुनाहों से गुनाहगार को माफी दिलाती है। इस पाक रात के दिन जो भी सच्चे दिल से अल्लाह की इबादत करता है। उसके सामने अपने गुनाहों से तौबा करता है। परवरदिगार उसे माफी अता करता है। यही वजह है कि मुस्लिम समुदाय के लोग इसके लिए खास तैयारियां करते हैं। नूरी मस्जिद के इमाम हाजी असरफ करीम कादरी ने बताया कि इस दिन केवल खुदा की इबादत ही नहीं की जाती बल्कि वो अपने जो अल्लाह को प्यारे हो गए हैं। उनकी कब्र पर जाकर पूरी रात दुआ की जाती है। फूल चढ़ाकर और कब्र के आस पास अगरबत्ती जलाकर उनको याद करते हैं। उन्होंने कहा कि कब्रों पर चिराग जलते हैं और दुनिया को अलविदा कह गए अपनों के लिए मगफिरत की दुआएं पढ़ी जाती हैं। हाजी असरफ करीम कादरी ने बताया कि माना जाता है कि रहमत की इस रात में अल्लाह पाक कब्र के सभी मुर्दों को आजाद कर देता है। मुस्लिम समुदाय मानता है। कि उनके वो अपने इस रात वापस अपने घर का रुख कर सकते हैं, इसलिए शब ए बारात की रात मीठा बनाने का रिवाज है। तथा मस्जिदों और कब्रिस्तानों में मुस्लिम लोग अपने पूर्वजों को याद करने के लिए पहुंचते हैं। मुस्लिम महिलाएं अपने अपने घरों में मीठे पकवान बनाती हैं। और इन्हें दुआ करने, इबादत के बाद गरीबों में बांटा जाता है। बताया जाता है। की शबे ए बरात की रात को मस्जिदों और कब्रिस्तानों में खास सजावट देखते ही बनी। ये रात इस्लाम में 4 मुकद्दस रातों में से एक मानी गई है।. पहली होती है आशूरा की रात, दूसरी शब-ए-मेराज, तीसरी शब-ए-बारात और चौथी शब-ए-कद्र की रात कही जाती है। रात्रि समय दानिश मंसूरी, जाहिद मंसूरी, अफजाल मंसूरी, ताबिश मंसूरी, परवेज आलम, महफूज आलम, मोहम्मद असलम मंसूरी, मेराज हसन, सेराज हसन, मोहम्मद आरिफ खान, नेसार वारिस खान, नेहाल खान, अकील अजहर, इजहार खान, निगार खान आदि मुस्लिम नवजवान झुंड बनाकर मजारों सहित कब्रिस्तानों पर जाकर अल्लाह से दुआ मांगी। हजरत रहमततुल्ला अलै0 की मजार पर दुआ करते मुस्लिम लोग।