गाजीपुर/सेवराई। समाजवादी संत डॉ राम मनोहर लोहिया जी ने कहा था कि " जब देश की सड़के ,जब युवाओं से सुनी हो जाएगी तब देश की संसद आवारा हो जाएगी"। निश्चित रूप से किसी भी लोकतांत्रिक देश की नीतियों तथा मूल्य का निर्धारण तथा उनके सफल क्रियान्वयन देश की न्यायपालिका तथा कार्यपालिका के द्वारा निर्धारित किया जाता है जिस देश की सदन के अंदर नीतियों तथा मूल्य के निर्धारण में निर्वाचित सदस्यों तथा सरकार की माहती भूमिका होती है। एक समय ऐसा भी था जब सदन के अंदर नीति निर्धारक में साहित्य ,कला ,खेल ,कृषि ,पत्रकारिता, शिक्षा, संस्कृत, सामाजिक सरोकार, तथा सभ्यता के गंध को विकसित करने वाले उत्कृष्ट किस्म के लोग अपने क्षेत्र में निर्वाचन होकर सदन में अपने कौशल तथा बुद्धि के द्वारा राष्ट्र के निर्माण में अपने सुझाव तथा नीतियों को सरकार के समय प्रस्तुत करते थे जनता तथा जनहित के मुद्दों पर सदन के अंदर सवाल होते थे परंतु आज इस देश का दुर्भाग्य है कि सदन में पहुंचे दो तिहाई वाले सदस्य की हिस्सेदारी जाती तथा वंशवाद की परंपरा के द्वारा निर्धारित होती रहती है यह एक चिंता का विषय है ।आज जहां पूरा विश्व सृजन तथा नवीनीकरण के सिद्धांतों पर कार्य कर रहा है इसमें अपना भारत देश भी अछूता नहीं है देश के अंदर सृजन तथा नवीनीकरण से संबंधित गतिविधियां जीवन एवं सामाजिक धार्मिक आर्थिक शैक्षणिक तथा अनुसंधान सहित नए क्षेत्र में स्पष्ट रूप से संचालित हो रही है परंतु इस देश की नीति तथा मूल्य के निर्धारण में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अंतर्गत चुनाव संबंधी गतिविधियों में किसी भी प्रकार का नवीनीकरण तथा सृजन न होना अपने आप में एक चिंता का विषय है । देश के अंदर जिस तरीके से धार्मिक स्थलों के नव निर्माण तथा धार्मिक नाम परिवर्तन के साथ-साथ आर्थिक क्षेत्र में भी विभिन्न प्रकार की योजनाओं के द्वारा अमूल परिवर्तन  लाए जा रहे हैं । वर्तमान में जिस तरीके से देश में व्याप्त पुरानी मैकाले की शिक्षा पढ़ाई को बदलकर नई शिक्षा नीति का सिद्धांत तथा इसका क्रियान्वयन एवं देश देश की शिक्षा व्यवस्था में एक सुधार का विकल्प हो सकता है जैसे कि इसे बताया जा रहा है परंतु यह आने वाले वक्त ही इसकी सफलता की कहानी को गढ़ पाएगा । आज जिस तरीके से देश के अंदर शिक्षा तथा नौकरियों में गुणवत्ता तथा गुणवत्तापूर्ण नौकरियों के लिए योग्य अभ्यर्थियों की कठिन परीक्षा प्रणाली से गुजरना पड़ रहा है फिर भी रोजगार तथा नौकरी के अवसर कम ही मिल पा रहे हैं परंतु राजनीतिक क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण नेताओं के निर्माण में इस तरीके के निर्माण की अवधारणा निश्चित ही काला धब्बा देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर छोड़ रहा है । आज जिस तरीके से देश में शोध संबंधी गतिविधियों में सोधार्थीयो  के लिए रिसर्च इंटरेस्ट टेस्ट ( रेट ) के द्वारा शोध की गुणवत्ता को बढ़ाने का प्रयास जारी है तो वहीं उच्च शिक्षा में नेट के द्वारा योग्य शिक्षाको का मूल्यांकन करके उत्कृष्ट शिक्षाको के द्वारा शिक्षा पद्धति को आगे बढ़ाया जा रहा है । अगर व्याप्त प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा की सुधार हो तो सरकार को शिक्षक पात्रता परीक्षा ( टेट)का विकल्प तैयार करके इस गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पद्धति को बढ़ाने हेतु प्रयासरत है । अधीनस्थ  सेवा आयोग के द्वारा भी जिस तरीके से ग्रुप सी से संबंधित नौकरियों के लिए प्रारंभिक पात्रता परीक्षा ( पेट )आयोजित करके ही अभ्यर्थियों की दक्षता का मूल्यांकन किया जा रहा है कि क्या यह अमुक अभ्यर्थी इस नौकरी के योग्य है या नहीं परंतु सबसे बड़ा आज का सवाल यह है कि क्या सभी नियम तथा पाबंदियां सिर्फ और सिर्फ इस देश की युवा पर भी लागू किया जाएगा या इस देश के नेताओं तथा अफसर पर भी । देश के अंदर जहां से नीतियां निर्धारित होती हैं तथा उसे सदन के सदस्यों के लिए इस देश के किसी भी प्रकार की पात्रता परीक्षा न होना निश्चित रूप से बेमानी प्रतीत जान पड़ रहा है । सदन के अंदर पहुंचने वाला निर्वाचन सदस्यों के लिए किसी भी प्रकार की इस देश में पात्रता तथा परीक्षा का निर्धारण ना करना सत्ता और विपक्ष की एक सोची समझी नीति प्रतीत होती है । यह तो निश्चित रूप से एकाधिकार का नियम प्रतीत हो रहा है कि इस देश में पढ़ने और नौकरी करने वाले व्यक्तियों के लिए ही पात्रता परीक्षा निर्धारित होगी जबकि इस देश के नीति निर्धारकों और सदन में उसकी सफल में क्रियानवन के लिए नेताओं के लिए भी किसी भी प्रकार की परीक्षा आयोजित ना होना इस देश में एकाधिकार प्रणाली को स्पष्ट रूप से इंगित करता है । इस महत्वपूर्ण सवाल पर सदन के अंदर एक बहस की अत्यंत आवश्यकता है परंतु इस मुद्दे पर सत्ता तथा विपक्ष एक होना निश्चित ही उनके कठिन मानसिकता को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं देश के युवाओं को देश के नेताओं से सवाल खड़ा करना होगा कि आखिर जब बात अधिकार की आती है तो मुझे तमाम नियमों और बधाओ से बांधकर मुझे पंगु बना दिया जाता है लेकिन यही बात जब इस देश के किसी नीति निर्धारक के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया में नेता पात्रता परीक्षा ( लेट ) की अनिवार्यता आज की अत्यंत जरूरत है ,क्योंकि इस पात्रता का न होने का परिणाम ही है कि लोग जाति तथा उसे बहुमत के आधार पर निर्वाचित सदस्य हो जा रहे हैं । जाति धर्म तथा पैसे की राजनीति में इस देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को तहस-नस कर दिया है जब इस देश के अंदर एक राष्ट्र एक पेंशन, एक राष्ट्र एक कार्ड जैसी गतिविधियां संचालित हो रहे हैं फिर राजनीतिक दलों तथा पार्टी तथा देश के न्यायपालिका को भी राजनीतिक क्षेत्र में पात्रता निर्धारित अवश्य करनी चाहिए जिससे राजनीतिक क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण व्यवस्था का ढांचा स्थापित किया जा सके ।


                   लेखक - रजनीश सिंह 

                      कृषि शोध छात्र