ग़ाज़ीपुर के कुँअर नसीम रज़ा का नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड-2024 में दर्ज


ग़ाज़ीपुर । उत्तर प्रदेश के जनपद ग़ाज़ीपुर में दिलदारनगर स्थित अल दीनदार शम्सी म्यूज़ियम एंड रिसर्च सेंटर के संस्थापक, निदेशक एवं संग्रहकर्ता कुँअर मुहम्मद नसीम रज़ा ने संग्रहालय के लिए पिछले 20 वर्षों से ऐसे कई पांडूलिपियों, दूर्लभ प्राचीन वस्तुओं का संग्रह कर रखा है। इन्हीं में से 118 वर्ष पूर्व भारतीय उर्दू भाषा मतदाता सूची को राष्ट्रीय धरोहर के रूप मे संरक्षित कर इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड-2024 में अपना नाम दर्ज करवाया है। इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड की ओर से शुक्रवार को सर्टिफिकेट, मेडल, बाक्स आदि प्राप्त हुआ।

कुँअर मुहम्मद नसीम रज़ा ने बताया कि हमारे देश में इस समय लोकसभा चुनाव का महापर्व चल रहा है। इसको लेकर मतदाताओं में एक जागरुकता अभियान चुनाव पर्व को लेकर बनी हुई है। भारतीय इतिहास में चुनाव के दृष्टिकोण से सन् 1906-07 ई का यह उर्दू मतदाता सूची उत्तर प्रदेश के जनपद ग़ाज़ीपुर के परगना एवं तहसील,  वर्तमान विधानसभा ज़मानिया क्षेत्र का है। जिसमें सिर्फ 50 मतदाता के नाम अंकित किए गए हैं तब इस तहसील में कुल 50 वोटर हुआ करते थे और उन्हीं वोटरों में से 4 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे थे, बाकी 46 सदस्य कुल 4 सदस्यों को मतदान की जरिए चुनाव करते थे, उन्हीं चुने गए मेंबरों में सर्वाधिक वोट पाने वाला व्यक्ति ही लोकल बोर्ड का मेंबर होता था। इसके उपरांत हो रहे चुनाव में डिस्ट्रिक्ट बोर्ड मेंबर चुने जाते थे।

कुँअर नसीम रज़ा ने बताया कि मेरे संग्रह में सन् 1945 ई. की दो ऐसी दूर्लभ हिंदी, उर्दू मतदाता सूची है जो सिर्फ उन लोगों के लिए हैं जो मुसलमान हैं। जिसपर 26 मतदाता के नाम, पिता, कौम, पेशा, हल्का पटवारी, योग्यता की किस्म अंकित किए गए हैं। और इसपर सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली, कांसटीट्युन्सी बनारस व गोरखपुर कमिश्नरियों के अंतर्गत पोलिंग स्टेशन दिलदारनगर, परगना ज़मानिया, तहसील ग़ाज़ीपुर, जिला ग़ाज़ीपुर अंकित हैं।

   स्वतंत्रता के बाद चुनाव की महत्ता बढ़ी मतदान और भी लोकप्रिय होते गए, मतदाताओं की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी होती रही है। 1951 में हुए पहले आम चुनाव से सही मायने में भारत में लोकतंत्र का आगाज हुआ। उस समय चुनाव आयोग को मतदाताओं को चुनाव को लेकर जागरूक करने के लिए अखबार छपवाने पड़े थे। मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को चिंता इस बात को लेकर थी कि 18 करोड़ मतदाताओं को कैसे वोट' देने के लिए प्रेरित किया जाए। उन्हें कैसे बताया जाए कि उनका बूथ कहां है, मतदान कैसे करना है। इसके लिए अलग-अलग भाषाओं के 397 अखबार शुरू किए गए। इन अखबारों में चरणबद्ध तरीके से लोगों को समझाया और बताया गया कि कहाँ और कैसे मतदान होगा? तथा मतदान से क्या बदल जाएगा। 

   भारतीय संविधान ने आज वोट देने के अधिकार को अमीरों, जमींदारो, मुखियाओं, चौधरियों एवं मानिंद हस्तियों से जो लगान भरते थे, करदाता थे उनसे बाहर निकाल कर भारतीय जन मानस तक अपने-अपने मताधिकार का प्रयोग सुनिश्चित किया। आज भारत मे 18 वर्ष से लेकर प्रत्येक भारतीय नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकता है। अपने मनपसंद का जनसेवक चुन सकता है। लेकिन पिछले 118 वर्ष पूर्व इतिहास के आईने को देखें तो यह मतदाता सूची भारतीय राजनैतिक इतिहास को दर्शाते हुए चुनाव के शुरूआती महत्ता को बयान करती है। वर्तमान में विधानसभा ज़मानिया की कुल मतदाताओं की संख्या लगभग चार लाख है जिसमें महिला एवं पुरुष शामिल हैं। जबकि 118 वर्ष पूर्व कुल मतदाताओं की संख्या सिर्फ 50 थी जिसमें केवल पुरुष ही शामिल थे और वोट देने का अधिकार उच्च कोटि के व्यक्तियों, मानिंद हस्तियों को ही प्रदान था। ऐसे में कुँअर मुहम्मद नसीम रज़ा द्वारा संग्रहित, संरक्षित मतदाता सूची अति महत्वपूर्ण, दुर्लभ, ऐतिहासिक धरोहर है। जिसको सुरक्षित बचाकर शोधकर्ताओं एवं इतिहासकारों के लिए एक विशेष अनूठा अभिलेख, पांडुलपि प्रदान किया है। 

इसलिए भारत के इस एकमात्र उर्दू भाषा में प्रकाशित मतदाता सूची को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड ने नसीम रज़ा का नाम दर्ज कर सर्टिफिकेट, मेडल, पेन, बैज एवं इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड-2024 की पुस्तक देकर सम्मानित किया।

   इस सम्मान से कुँअर मुहम्मद नसीम रज़ा के शुभचिंतकों, मित्रों सहित ग्रामवासी, क्षेत्रवासी, तथा जनपदवासियों में खुशी की लहर दौड़ गई और बधाई देने वालों का तांता लग गया।