गाजीपुर के जमानियां नगर कस्बा स्थित शाही जामा मस्जिद में 6,30 बजे, आमनत खान की मस्जिद में 6 बजकर 45 मिनट, और पठान टोली मोहल्ला स्थित चार मीनार मस्जिद में 7 बजे नमाज अदा की गई। और ईदगाह लोदीपुर में 6 बजकर 30 मिनट पर अदा करायी गई। बताया जाता है। की ईद उल अजहा यानि बकरीद का पर्व मुसलमानों के पैग़म्बर हज़रत इब्राहिम की कुर्बानी को याद करने के लिए मनाई जाती है। दुनिया के मुसलमान साल में दो त्योहार मनाते हैं जिसमें ईद-उल-अजहा भी खास है। 17 जून सोमवार को बकरीद का त्यौहार सकुशल शांतिपूर्ण मनाया गया। बकरीद को ईद-उल-अज़हा के नाम से भी जाना जाता है। बकरीद मुसलमानों को दो अहम त्योहारों में से एक है। इस दिन हलाल पशुओं की कुर्बानी की जाती है। यह ईद उल अजहा मुसलमानों के पैग़म्बर हज़रत इब्राहिम की कुर्बानी को याद करने के लिए मनाई जाती है। मुस्लिम समुदाय के मुताबिक अल्लाह ने हजरत इब्राहिम का इम्तिहान लेने के लिए उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी थी। हजरत इब्राहीम की सबसे प्यारी चीज उनका बेटा था। मुसलमान सुबह उठकर नहा-धोकर तैयार होने के बाद कपड़े पहन कर ईदगाह, शाही जामा मस्जिद, अमानत खान की मस्जिद, पठान टोला मोहल्ला स्थित चार मीनार सहित आदि मस्जिदों में जाकर ईद की नमाज पढ़ी। ईद उल अजहा की नमाज पढ़ने के बाद मुसलमान कुर्बानी की रस्म अदा करने में मशगूल हो जाते है। मुस्लिम घरों में जश्न का माहौल बना रहता है। ईदगाह लोदीपुर के इमाम असरफ करीम कादरी, शाही जामा मस्जिद के सेकेट्री मौलाना तनवीर रजा सिद्दीकी, नूरी मस्जिद के मौलाना महमूद आलम आदि सहित मौलाना ने बताया कि घर में मेहमान आते-जाते रहते हैं। इसके साथ ही घर की महिलाएं खाने-पीने की खूब तैयारियां करने में जुटी रहती है। ईद-उल-अजहा के मौके पर दोस्त और रिश्तेदार एक-दूसरे के घर आते जाते रहते है। और एक दूसरे को इस दिन की बधाई देते हैं। उन्होंने बताया कि ईद के मौके पर अपने दोस्तों और साथियों को इस दिन की बधाई देना चाहिए। और अपने परिवार, साथियों और दोस्तों को ईद उल अजहा की मुबारक कह सकते हैं। बताया जाता है। की बकरीद का त्योहार सोमवार को शांतिपूर्ण मनाया गया। सोमवार की सुबह से ही नमाज शुरू हो गई। इसके लिए ईदगाहों व मस्जिदों में विशेष व्यवस्था किया गया था। वहीं बढ़ती गर्मी को देखते हुए सुबह जल्दी नमाज को खत्म किया गया। ताकि लोगों को गर्मी से परेशानी न हो.ईद उल अजहा की नमाज खत्म होने पर मौलाना तनवीर रजा सिद्दीकी ने बताया कि बकरीद बलिदान देने का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि बकरीद एक इंसान को दूसरे इंसान व संपूर्ण मानव जीवन के लिए बलिदान देने का प्रतीक है। किसी भी मनुष्य को घमंड, लालच और द्वेष रहित होकर अपने जीवन को रब के आगे समर्पित कर देना ही असली कुर्बानी है। आपसी समरसता व भाईचारे के माहौल में कुर्बानी का त्योहार मनाना हम सबका दायित्व है। ईदगाह लोदीपुर के इमाम असरफ करीम कादरी ने बताया कि जज्बा ए कुर्बानी जिस समाज में पाया जाता है। वह तरक्की करता है। उन्होंने बताया कि बकरीद का पर्व लोगों को इस बात का संदेश देता है। कि हर इंसान को किसी न किसी मौके पर चाहत की कुर्बानी देनी चाहिए। जानवर की कुर्बानी देना आसान है। लेकिन चाहत की कुर्बानी देना मुश्किल है और जो चाहत की कुर्बानी देता है। वह कामयाब है। उन्होंने कहा कि ऐसा काम न करें, जो दूसरों को तकलीफ पहुंचाये. मजहबे इस्लाम में तकलीफ देकर इबादत करने को सही नहीं माना गया है।