गोरखपुर/अयोध्या: उत्तर प्रदेश में भाजपा की करारी हार का विश्लेषण शुरू हो चुका है और हार के कारणों की व्याख्या की जा रही है लेकिन असल कारण से जान-बूझकर मुंह मोड़ा जा रहा है. लोगों में बेरोजगारी, महंगाई, अग्निपथ योजना, पेपर लीक, ग्रामीण संकट, खेती-किसानी के साथ-साथ संविधान व लोकतंत्र के सवाल को लेकर मोदी-योगी सरकार के खिलाफ तीव्र आक्रोश था, जो सपा-कांग्रेस गठबंधन, पीडीए के प्रयोग, बसपा के अलग-थलग पड़ने सहित कई फैक्टर से मिलकर एक सत्ता विरोधी करंट में बदल गया. यूपी की नई करवट का अंदाजा बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषकों, एग्जिट पोल वालों को एकदम नहीं था जबकि गंगा, सरयू, घाघरा, गोमती नदी से आ रही हवाएं साफ बता रही थी कि यहां का मौसम बदलने वाला है. बलिया जिले के फेफना विधानसभा क्षेत्र के बैरिया गांव के धुर पोलिटिकल एक्सपर्ट शशि शेखर राय ने 28 मई की दोपहर कहा था कि बलिया करवट ले चुका है. गंगा तीरे की ठंडी हवा ही दिल्ली जाएगी. उनकी बात सच साबित हुई. जनवरी के ठंडे मौसम में जब राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का भव्य और दिव्य समारोह हुआ था तो उसकी गूंज ऐसी बनाई गई थी कि लगा कि कम से कम यूपी में चुनाव बस कहने को होगा. राम मंदिर के कारण भाजपा की दुदुंभी चारों तरफ मचेगी. मेरे एक परिचित मर्चेंट नेवी में हैं. राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के दिन उनका जहाज यूरोप में था. उन्होंने बताया कि रात में सभी क्रू मेंबरों ने खुशी में जश्न मनाया. यह जश्न बिहार और नेपाल के त्रिकोण पर नारायणी नदी के गोद में बसे सोहगीबरवां गांव में भी मनाया गया था जहां आज भी जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है. यह गांव छह महीने तक टापू बना रहता है. लोग नदी की कई धाराओं को नाव से पार कर जाते हैं, फिर रेत में चार-चार किलोमीटर तक पैदल चलते हैं तब जाकर अपने घर पहुंच पाते हैं. राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की खुशी में यहां लोगों ने जुलूस निकाला और खुशी मनाई लेकिन दो महीने बाद ही चुनाव की घोषणा के पहले अपने गांव में चुनाव बहिष्कार के बैनर लगा दिए. गांव के लोगों ने कहा कि पुल नहीं बना, तो हम वोट नहीं देेंगे. जब दमीडिया ने इन ग्रामीणों से एक सवाल किया कि मतदान के दिन आप किसको तरजीह देगे? राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को या पुल को? एकबारगी तो सन्नाटा छा गया लेकिन फिर एक साथ तीन चार स्वर उभरे-हम लोग अपने मुद्दे के साथ रहेंगे. कुछ दिन बाद गोरखपुर के उन 26 गांवों में भाजपा के बहिष्कार के बैनर टंगने शुरू हो गए जिनकी जमीन बाईपास बनाने के लिए सात साल पुराने सर्किल रेट पर ले ली गई थी. तमाम प्रयास के बाद भी इन किसानों की एक न सुनी गई. बैनर लगाने वालें लोगों के घर पुलिस जाने लगी. उन्हें थाने बुलाया जाने लगा. कहा गया कि इस तरह का बैनर लगाना आचार संहिता का उल्लंघन है. ‘ भाजपा बहिष्कार’ आंदोलन की अगुवाई कर रहे एक नौजवान के आंखों में आंसू थे और उसने कहा कि पिछली बार भाजपा को वोट दिया था. इस बार अपने वोट की ताकत इसे हराने में लगाउंगा. इस तरह की आवाजें अन्यत्र भी सुनाई पड़ रही थीं. आरा से छपरा जा रहे मजदूर ने कहा कि ‘मेन मुद्दा बेरोजगारी बा. महंगाई से पांच सौ की दिहाड़ी भी कम पड़त बा तो मगहर में संत कबीर की निर्वाण स्थली पर चाट का ठेला लगाए शिवचरन गुप्ता कह रहे थे कि 150 रुपये में दो जून की सब्जी नहीं आ रही है. एक और ठेला वाला सवाल कर रहा था कि ‘देखिए इतना बड़ा-बड़ा काम हो रहा है लेकिन हम लोगों को रोजगार क्यों नहीं मिलता बल्कि उल्टे हमें खदेड़ा जा रहा है.’ पेपर लीक से प्रभावित युवा कह रहे थे कि हम सरकार को वोट का चोट देकर सबक सिखाना चाह रहे हैं. गोरखपुर के चौरीचौरा क्षेत्र के सहसरांव गांव का युवा आदर्श कह रहा था कि भर्ती परीक्षा में शामिल होने वाला युवा भाजपा को हराने के लिए वोट करेगा. युवाओं के आक्रोश को बुजुर्ग भी तस्दीक कर रहे थे. शनिचरा गांव के झिनकू निषाद ने सरकारी भर्ती नहीं होने पर भोजपुरी में टिप्पणी की, ‘मोदी जी नौकरी के मोटरी अइसन बांध दिहलें बाटें कि खुलते नाहीं बा.’ ये आवाजें अयोध्या तक सघन होती गई थीं. राम मंदिर जाने वाले राम पथ पर राम मंदिर की तस्वीर, बजरंग बली की गदा बेचने वाले मौर्या जी भड़क उठे थे. उन्होंने कहा कि क्या फायदा आपसे बात करके. सब लोग हमारी बात सुनता है लेकिन लिखता नहीं है, दिखाता नहीं है. मौर्या जी बताया कि उनकी जमीन पर सड़क बन गई है और बाकी जमीन मंदिर परिसर क्षेत्र में आ गई है. राम पथ पर फुटपाथ पर छाता तान सामान बेच रहे किशोर की भी यही कहानी थी. उसकी सब्जी की दुकान थी जो सड़क चौड़ीकरण में चली गई. सिर्फ एक लाख रुपये मुआवजा मिला. फुटपाथ पर दुकान लगाने के लिए रोज 200 रुपये देने पड़ते हैं. उसका भाई आउटसोर्स कंपनी के जरिये राम मंदिर निर्माण में एक वर्ष तक मजदूरी करता रहा. उसके पास मजदूरों के शोषण की कथा व्यथा है जिसे कोई सुनना नहीं चाहता.