गाज़ीपुर। जमानियां नगर कस्बा स्थित शाही जामा मस्जिद में जुमा नमाज से पहले तकरीर पेश करते हुए मौलाना तनवीर रजा सिद्दीकी ने पैगम्बर हजरत इब्राहिम अलैहिम की याद में रौशनी डाला। और बताया कि ईद उल अजहा का महीना वास्तव में अल्लाह के पैगम्बर हजरत इब्राहिम अलैहिस सलाम की याद में मनाई जाती है। जिनको अल्लाह ने 80 साल की उम्र के बाद पहला बेटा हजरत इस्माइल अलैहिस सलाम के रूप में दी। और पूरे घराने में खुशी की लहर दौड़ गई। लेकिन अल्लाह को कुछ और ही मंजूर था। उन्होंने बताया कि अल्लाह पाक ने हजरात इब्राहिम अलैहिस सलाम से एक बड़े इम्तेहान लिए जिसमें वह कामयाब रहे। सबसे बड़ा इम्तेहान उनके पुत्र हजरत इस्माइल अलैहिस सलाम की उम्र जब बारह साल हुई तब देना पड़ा। उम्र के अंतिम पड़ाव में हुए बेटे की पैदाइस से हजरत इब्राहिम अलैहिस बहुत प्यार करते थे। मगर अल्लाह ताला ने उस प्यारे बेटे को अल्लाह की राह में कुर्बानी देने का हुक्म दे दिया। अल्लाह के इस हुक्म से हजरत इब्राहिम खुश थे। और वे हंसी-खुशी बेटे को कुर्बान करने को तैयार हो गए। और अल्लाह के इस हुक्म को जब हजरत इब्राहिम अपने लखते जिगर हजरत इस्माइल को बताए। तो वह भी हंसी-खुशी अल्लाह की राह में कुर्बान होने को राजी हो गए। इससे बड़ा इम्तेहान और क्या हो सकता था। जब एक बाप इकलौते बेटे को अपने हाथों से उनके गर्दन पर छुरी चलाए। और हुक्म के मुताबिक हज़रते इब्राहिम अलैहिस सलाम कुर्बानी के दिन अपने लाडले हजरत इस्माइल को सुबह नहला धुला कर नए कपड़े पहनाकर मीना मैदान में कुर्बानी देने के लिए ले गए। तनवीर रजा सिद्दीकी ने बताया कि कुर्बानगाह में लेटा दिया और जैसे ही छुरी चलाना चाहा तो बेटे ने कहा कि अब्बु जान छुरी चलने से पहले आंख में पट्टी बांध लें। ताकि छुरी चालते समय हाथ न कांपे। तब हजरते इब्राहिम अलैहिस सलाम ने आंख में पट्टी बांध ली। उसके बाद जैसे ही छुरी चलाने लगे तो छुरी नहीं चली। दोबारा प्रयास किया गया तब छुरी चल गई और कुर्बानी भी हो गई मगर जब आंख पर लगी पट्टी खोलकर देखा तो हजरते इस्माइल की जगह हजरते जिब्रील द्वारा जन्नती दुम्बा लेकर लेटा दिया गया था। तकरीर सुनकर सभी नमाजियों के आंखे नम हो गई। रजा ने बताया कि दरअसल अल्लाह ताला हजरते इब्राहिम अलैहिस सलाम से इम्तिहान लेना चाह रहे थे। पर हजरते इब्राहिम अलैहिस सलाम इस परीक्षा में पास कर गए। तबसे ईदुल अजहा के दिन मालदार शहाबे नेसब मुसलमानों पर कुर्बानी फर्ज हो गया। उन्होंने कहा कि हर साहबे नेसाब पर कुर्बानी वाजिब है। कुर्बानी का गोस्त तीन हिस्से में बांटकर एक हिस्सा अपने रखना है, दूसरा हिस्सा अपने बगलगीरों में एवं तीसरा हिस्सा अपने रिश्तेदारों तथा गरीबों के बीच वितरण करना है। फोटो
शाही जामा मस्जिद के सेकेट्री मौलाना तनवीर रजा सिद्दीकी ने इब्राहिम अलैहिम की याद में रौशनी डाली
गाज़ीपुर। जमानियां नगर कस्बा स्थित शाही जामा मस्जिद में जुमा नमाज से पहले तकरीर पेश करते हुए मौलाना तनवीर रजा सिद्दीकी ने पैगम्बर हजरत इब्राहिम अलैहिम की याद में रौशनी डाला। और बताया कि ईद उल अजहा का महीना वास्तव में अल्लाह के पैगम्बर हजरत इब्राहिम अलैहिस सलाम की याद में मनाई जाती है। जिनको अल्लाह ने 80 साल की उम्र के बाद पहला बेटा हजरत इस्माइल अलैहिस सलाम के रूप में दी। और पूरे घराने में खुशी की लहर दौड़ गई। लेकिन अल्लाह को कुछ और ही मंजूर था। उन्होंने बताया कि अल्लाह पाक ने हजरात इब्राहिम अलैहिस सलाम से एक बड़े इम्तेहान लिए जिसमें वह कामयाब रहे। सबसे बड़ा इम्तेहान उनके पुत्र हजरत इस्माइल अलैहिस सलाम की उम्र जब बारह साल हुई तब देना पड़ा। उम्र के अंतिम पड़ाव में हुए बेटे की पैदाइस से हजरत इब्राहिम अलैहिस बहुत प्यार करते थे। मगर अल्लाह ताला ने उस प्यारे बेटे को अल्लाह की राह में कुर्बानी देने का हुक्म दे दिया। अल्लाह के इस हुक्म से हजरत इब्राहिम खुश थे। और वे हंसी-खुशी बेटे को कुर्बान करने को तैयार हो गए। और अल्लाह के इस हुक्म को जब हजरत इब्राहिम अपने लखते जिगर हजरत इस्माइल को बताए। तो वह भी हंसी-खुशी अल्लाह की राह में कुर्बान होने को राजी हो गए। इससे बड़ा इम्तेहान और क्या हो सकता था। जब एक बाप इकलौते बेटे को अपने हाथों से उनके गर्दन पर छुरी चलाए। और हुक्म के मुताबिक हज़रते इब्राहिम अलैहिस सलाम कुर्बानी के दिन अपने लाडले हजरत इस्माइल को सुबह नहला धुला कर नए कपड़े पहनाकर मीना मैदान में कुर्बानी देने के लिए ले गए। तनवीर रजा सिद्दीकी ने बताया कि कुर्बानगाह में लेटा दिया और जैसे ही छुरी चलाना चाहा तो बेटे ने कहा कि अब्बु जान छुरी चलने से पहले आंख में पट्टी बांध लें। ताकि छुरी चालते समय हाथ न कांपे। तब हजरते इब्राहिम अलैहिस सलाम ने आंख में पट्टी बांध ली। उसके बाद जैसे ही छुरी चलाने लगे तो छुरी नहीं चली। दोबारा प्रयास किया गया तब छुरी चल गई और कुर्बानी भी हो गई मगर जब आंख पर लगी पट्टी खोलकर देखा तो हजरते इस्माइल की जगह हजरते जिब्रील द्वारा जन्नती दुम्बा लेकर लेटा दिया गया था। तकरीर सुनकर सभी नमाजियों के आंखे नम हो गई। रजा ने बताया कि दरअसल अल्लाह ताला हजरते इब्राहिम अलैहिस सलाम से इम्तिहान लेना चाह रहे थे। पर हजरते इब्राहिम अलैहिस सलाम इस परीक्षा में पास कर गए। तबसे ईदुल अजहा के दिन मालदार शहाबे नेसब मुसलमानों पर कुर्बानी फर्ज हो गया। उन्होंने कहा कि हर साहबे नेसाब पर कुर्बानी वाजिब है। कुर्बानी का गोस्त तीन हिस्से में बांटकर एक हिस्सा अपने रखना है, दूसरा हिस्सा अपने बगलगीरों में एवं तीसरा हिस्सा अपने रिश्तेदारों तथा गरीबों के बीच वितरण करना है। फोटो