भांवरकोल। क्षेत्र के अवथहीं गांव स्थित काली मन्दिर पर नौ दिवसीय लक्ष्मी-नारायण महायज्ञ में अयोध्या धाम से पधारी कथावाचक आरती किशोरी जी ने राम कथा सुनाई। कहा कि श्रीराम सीता की खोज में भटक रहे थे। बहुत कोशिशों के बाद भी सीता की खबर न मिलने से श्रीराम बहुत दुखी थे। जब श्रीराम की ये लीला चल रही थी, उस समय शिव जी और देवी सती ने श्रीराम को देखा। शिव जी ने दूर से ही श्रीराम को प्रणाम कर लिया, लेकिन माता सती के मन में शंका थी। श्रीराम दुखी थे, रो रहे थे, ये देखकर सती को इस बात पर भरोसा नहीं हुआ कि यही शिव जी के आराध्य राम हैं। देवी सती ने अपने मन की बात शिव जी को बताई तो शिव जी ने कहा, 'ये सब राम जी की लीला है, आप शक न करें। उन्हें प्रणाम करें।' शिव जी के समझाने के बाद भी देवी सती को इस बात पर भरोसा नहीं हुआ कि राम ही भगवान हैं। वह राम जी की परीक्षा लेने वन में चली गईं। वह सीता का वेश बनाकर भगवान श्रीराम के सामने पहुंची तो मर्यादा पुरुषोत्तम ने सती जी को तुरंत पहचान लिया और भगवान भोलेनाथ का समाचार पूछा। तब वह लज्जित होकर भगवान शिव जी के पास वापस चली आई। जब शिवजी ने पूछा तो माता सती झूठ बोल गई। भगवान शंकर ने ध्यान कर सबकुछ जान लिया। इसके बाद उन्होंने माता सती को अपनी पत्नी के रूप में परित्याग करने का प्रण कर लिया। शिवजी का सती को पत्नी रूप में परित्याग, सती का शरीर त्याग, पार्वती के रूप में पुनर्जन्म तथा उनकी कठोर तपस्या, कामदेव द्वारा शिवजी का ध्यान भंग करना, कामदेव का भस्म होना, अंत में पार्वती जी का शिवजी के साथ विवाह होने की घटना घटती है।