गाजीपुर। आज पूरे पूर्वांचल ही नहीं बल्कि देश में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अफजाल अंसारी की जीत की आवाज सुनाई दे रही है। बिना बसपा से गठबंधन केएक लाख 24 हजार वोटों से चुनाव फतह करने वाले अफजाल की जीत के पीछे पूर्व विधायक उमाशंकर कुशवाहा नायक की भूमिका में रहे। उमाशंकर चुनाव के अंतिम वक्त तक भाजपा की घेराबंदी के बावजूद कुशवाहा वोटरों को सपा के पाले में करने में कामयाब रहे। कुशवाहा वोटरों को अपने पाले में करने के लिए भाजपा ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या को भी जमानियां में बुलाया था, मगर उनका कोई असर नहीं दिखाई दिया। यहां का कुशवाहा उमाशंकर को ही अपना बड़ा नेता मानता है। उमाशंकर कुशवाहा का अगर सियासी सफर पर गौर किया जाए तो वह 2002 में पहली बार विधायक निर्वाचित हुए थे। मगर कई चुनाव हारने के बाद भी वह अभी तक कुशवाहा समाज के दिलों में जगह बनाए हुए हैं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में जब उमाशंकर भाजपा के साथ थे तो उसे तीन सीटों पर विजय हासिल हुई थी। उमाशंकर के जाते ही भाजपा एक बार फिर हाशिए पर आ गई। हर विधानसभा में कुशवाहा वोटर निर्णायक स्थिति में रहा। देखा जाए तो जंगीपुर में 30 हजार से अधिक वोट कुशवाहा समाज का है। इसी तरह से जमानियां में 45 हजार, सदर में 25 हजार, जखनियां 35 हजार से अधिक और सैदपुर विधानसभा में 25 हजार के आसपास कुशवाहा वोटर हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद उमाशंकर की जब भाजपा में उपेक्षा होने लगी तो उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने सपा में आकर अफजाल का साथ दिया। उमाशंकर का दर्द था कि भाजपा मेरी अहमियत समझ नहीं पाई। मनोज सिन्हा ने मंच भी साझा नहीं होने दिया। मुझे टिकट से वंचित किया गया। नहीं तो 2017 में जंगीपुर से उमाशंकर विधायक रहते। यही वजह रही कि 2019 में कुशवाहा वोटर पलट गया, जिसके चलते भाजपा हार गई। फिर 2022 में भी भाजपा ने उमाशंकर का महत्व नहीं समझा। केशव मौर्या चाहते थे कि उमाशंकर को भाजपा में शामिल कराकर उनका कद बढ़ाया जाए, लेकिन मनोज सिन्हा की ना के कारण ऐसा नहीं हो सका। 2022 के विधानसभा में मनोज सिन्हा के मंदिर मंदिर घूमने के बाद भी भाजपा ने सातों सीट हार गई। फिर भी न तो मनोज सिन्हा चेते और न ही भाजपा। जब भाजपा ने 2024 चुनाव के लिए पारसनाथ राय को मनोज सिन्हा के कहने पर उम्मीदवार बनाया तो भी उमाशंकर से दूरी बनाई गई। इसका नतीजा सबके सामने है। खूब कोशिश हुई कि कुशवाहा समाज भाजपा के पाले में चला जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कुशवाहा समाज को यह पता है कि डिप्टी सीएम होने के बाद भी केशव मौर्या की भाजपा में हैसियत कैसी है। पूरे चुनाव के दौरान अफजाल अपनी गाड़ी में ही उमाशंकर को लेकर घूमाते रहे। उन्हें उमाशंकर की अहमियत का अंदाजा था। पूरे जिले का कुशवाहा समाज उमाशंकर को अपना नेता और अभिभावक मानता है। शुरू से ही उमाशंकर बिरादरीवाद के कारण विपक्ष के निशाने पर रहे। लेकिन वह अपने समाज का पक्ष लेने से नहीं चूके। अफजाल की जीत पर उमाशंकर कुशवाहा ने सिर्फ इतना कहा कि जनता ने भाजपा के अहंकार को धराशायी कर दिया। जनता के इस फैसले ने देश के दो अहंकारी नेताओं के चंगुल से मुक्त करा दिया।
अब भाजपा नेताओं के लिए उमाशंकर कुशवाहा बने चुनौती
गाजीपुर। आज पूरे पूर्वांचल ही नहीं बल्कि देश में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अफजाल अंसारी की जीत की आवाज सुनाई दे रही है। बिना बसपा से गठबंधन केएक लाख 24 हजार वोटों से चुनाव फतह करने वाले अफजाल की जीत के पीछे पूर्व विधायक उमाशंकर कुशवाहा नायक की भूमिका में रहे। उमाशंकर चुनाव के अंतिम वक्त तक भाजपा की घेराबंदी के बावजूद कुशवाहा वोटरों को सपा के पाले में करने में कामयाब रहे। कुशवाहा वोटरों को अपने पाले में करने के लिए भाजपा ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या को भी जमानियां में बुलाया था, मगर उनका कोई असर नहीं दिखाई दिया। यहां का कुशवाहा उमाशंकर को ही अपना बड़ा नेता मानता है। उमाशंकर कुशवाहा का अगर सियासी सफर पर गौर किया जाए तो वह 2002 में पहली बार विधायक निर्वाचित हुए थे। मगर कई चुनाव हारने के बाद भी वह अभी तक कुशवाहा समाज के दिलों में जगह बनाए हुए हैं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में जब उमाशंकर भाजपा के साथ थे तो उसे तीन सीटों पर विजय हासिल हुई थी। उमाशंकर के जाते ही भाजपा एक बार फिर हाशिए पर आ गई। हर विधानसभा में कुशवाहा वोटर निर्णायक स्थिति में रहा। देखा जाए तो जंगीपुर में 30 हजार से अधिक वोट कुशवाहा समाज का है। इसी तरह से जमानियां में 45 हजार, सदर में 25 हजार, जखनियां 35 हजार से अधिक और सैदपुर विधानसभा में 25 हजार के आसपास कुशवाहा वोटर हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद उमाशंकर की जब भाजपा में उपेक्षा होने लगी तो उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने सपा में आकर अफजाल का साथ दिया। उमाशंकर का दर्द था कि भाजपा मेरी अहमियत समझ नहीं पाई। मनोज सिन्हा ने मंच भी साझा नहीं होने दिया। मुझे टिकट से वंचित किया गया। नहीं तो 2017 में जंगीपुर से उमाशंकर विधायक रहते। यही वजह रही कि 2019 में कुशवाहा वोटर पलट गया, जिसके चलते भाजपा हार गई। फिर 2022 में भी भाजपा ने उमाशंकर का महत्व नहीं समझा। केशव मौर्या चाहते थे कि उमाशंकर को भाजपा में शामिल कराकर उनका कद बढ़ाया जाए, लेकिन मनोज सिन्हा की ना के कारण ऐसा नहीं हो सका। 2022 के विधानसभा में मनोज सिन्हा के मंदिर मंदिर घूमने के बाद भी भाजपा ने सातों सीट हार गई। फिर भी न तो मनोज सिन्हा चेते और न ही भाजपा। जब भाजपा ने 2024 चुनाव के लिए पारसनाथ राय को मनोज सिन्हा के कहने पर उम्मीदवार बनाया तो भी उमाशंकर से दूरी बनाई गई। इसका नतीजा सबके सामने है। खूब कोशिश हुई कि कुशवाहा समाज भाजपा के पाले में चला जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कुशवाहा समाज को यह पता है कि डिप्टी सीएम होने के बाद भी केशव मौर्या की भाजपा में हैसियत कैसी है। पूरे चुनाव के दौरान अफजाल अपनी गाड़ी में ही उमाशंकर को लेकर घूमाते रहे। उन्हें उमाशंकर की अहमियत का अंदाजा था। पूरे जिले का कुशवाहा समाज उमाशंकर को अपना नेता और अभिभावक मानता है। शुरू से ही उमाशंकर बिरादरीवाद के कारण विपक्ष के निशाने पर रहे। लेकिन वह अपने समाज का पक्ष लेने से नहीं चूके। अफजाल की जीत पर उमाशंकर कुशवाहा ने सिर्फ इतना कहा कि जनता ने भाजपा के अहंकार को धराशायी कर दिया। जनता के इस फैसले ने देश के दो अहंकारी नेताओं के चंगुल से मुक्त करा दिया।