त्याग और बलिदान के पर्व मोहर्रम पर निकलता है, भव्य ताजिया अखाड़ा जुलूस
गाजीपुर के जमानियां मुहर्रम पर हजरत इमाम हसन हुसैन की कुर्बानी पर यह अखाड़ा खेला जाता है। मुहर्रम में जो ताजिए बनाए जाते हैं। वह भी उनकी याद में बनाए जाते हैं। जमानियां कस्बा व स्टेशन बाजार में सभी लोग यहां पर एकत्रित होते हैं। और अखाड़े से पहले सलामी दी जाती हैं। उसके बाद बच्चे, बड़े और बुजुर्ग इसमें अखाड़ा खेलते हैं। बताया जाता है। की त्याग और बलिदान के पर्व मोहर्रम को लेकर जामताड़ा के विभिन्न अंजुमनों द्वारा सोमवार को अखाड़ा जुलूस निकाला गया। जामताड़ा के चौधरी मोहल्ला, पठान टोली, बुद्धीपुर, दुरहिया, पुरानी सट्टी बाजार, सैयद बाड़ा पहुंचा। जुलूस के दौरान या अली या हुसैन के नारों इलाका गूंज उठा। इस दौरान मुहर्रम जुलूस में इस्लाम धर्मावलंबियों के साथ साथ विभिन्न धर्म के लोग भी शामिल हुए। लाठियों से तरह तरह करतब दिखाए। बताया जाता है कि हजरत इमाम हुसैन अपने परिवार के साथ कर्बला के मैदान में शहीद हाे गए थे। लेकिन बातील के आगे अपने सिर नहीं झुकाया। इस्लाम को मानने वाले लोग हजरत हुसैन के याद में जुलूस के साथ मैदान-ए-जंग का दृश्य बड़े ही आकर्षक और अनोखे अंदाज में पेश किया करते है। इस दौरान कोतवाली पुलिस द्वारा जुलूस के दौरान सुरक्षा व्यवस्था का व्यापक इंतजाम रहता है। अखाड़ा जुलूस में शामिल होकर सैयद बाड़ा इमाम चौक सहन पहुंचकर समाप्त किया। बता दें कि अखाड़ा जुलूस में शामिल युवक लाठी खेल का प्रदर्शन किया। जमानियां कस्बा में लगभग 100 सौ साल से मुस्लिम बंधुओ के साथ हिंदू भाई भी शामिल होकर गंगा जमुनी एकता को कायम रखने के लिए अपनी योगदान देते आ रहे है। पहली मोहर्रम से लेकर तीसरी, पांचवी, सातवी मोहर्रम तक जुलूस अखाड़ा निकलता आ रहा है। और 6 मोहर्रम को रात्रि समय अखाड़ा जुलूस के साथ दुलदुल निकलता है। जो पूरी रात्रि अंजुमन वाले नौहाखानी मर्सिया पढ़ते हुए। कर्बला मैदान पहुंचते है। यह सिलसिला लगभग 100 सौ साल से चलता आ रहा है। नौहा मर्सिया सुनने के लिए सैकड़ों महिलाएं, पुरुष इक्कठा होते है। नगर कस्बा स्थित शाही जामा मस्जिद के सेकेट्री मौलाना तनवीर रजा सिद्दीकी ने बताया कि मोहर्रम का चांद दिखने के साथ ही इस्लामी नए साल का आगाज हो जाता है। इसके ही शहनाई की भी गूंज सुनाई देने लगी है। साथ ही ढोल-ताशों की भी आवाज भी गूंजने लगती है। अंजुमन वाले मोहर्रम के 6 तारीख और 10 तारीख को ताजिए के साथ नोहाखानी मर्सिया की आवास गूंजने लगती है। और यौमे आशूरा के मौके पर ताजिया की झांकी के साथ मोहर्रम के जुलूसों का समापन किया जाता है। रजा ने बताया कि ताजिया को भी लोगों के दर्शन के लिए खोल दिया जाता है। 10 वीं मोहर्रम तक इसके दर्शन करते है। उक्त मौके पर हयात वारसी खान, आरिफ खान, नेसार अहमद खान वारसी, शहजाद अली वारसी, मोहम्मद असलम पान वाले, खालिद कुरैशी, दानिश मंसूरी, बेलाल मंसूरी, जमाल मंसूरी, कमाल मंसूरी, फैयाज मंसूरी, मेराज मंसूरी आदि लोग साथ साथ चल रहे थे।