11वीं शरीफ के मौके पर घरों सहित मजारों पर कुरान शरीफ की तिलावत फतिहा पढ़ी जाती है
गाजीपुर के जमानियां नगर पालिका परिषद स्थित मोहल्ला जुनेदपुर मस्जिद में जुनेद शाह की मजार पर प्रति वर्ष 11वीं शरीफ के मौके पर ग्रामीण क्षेत्रों के दूर दराज इलाको से सैकड़ों मुस्लिम औरतों के साथ पुरुष गण पहुंचकर चादरपोशी करने पहुंचे। यह सिलसिला देर शाम तक चलता रहा। मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बताया कि जुनेद शाह रहमतुल्ला अलै, के नाम पर जुनेदपुर हुआ है। 11 वीं शरीफ मनाया जाने वाला एक त्योहार है। जो भी मुराद मांगने वाले आते हैं। उनकी मुरादे अवश्य पूरी होती है। देर शाम तक अनेकों दुकानें सजी रहती है। इस दौरान खरीदारी करने वालों की काफी भीड़ रहती है। उन्होंने बताया कि इस दिन, प्रसिद्ध सूफ़ी संत और विद्वान शेख़ अब्दुल कादिर जिलानी की याद में लोग दुआ, मिठाई, और फूल चढ़ाते हैं। इस दिन को ग्यारहवीं शरीफ़ के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है। की इस दिन लोग हज़रत अब्दुल कादिर जीलानी के नाम से फ़ातिहा ख्वानी करते हैं। तथा चादर पोशी और सलात-ओ-सलाम का नज़राना पेश किया जाता है। महान इस्लामिक ज्ञानी व सूफी संत हजरत अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह की याद में मनाया जाने वाला त्योहार ग्यारहवीं शरीफ 15 अक्तूबर को मनाया जाता है। यह जानकारी शाही जामा मस्जिद के सेकेट्री मौलाना तनवीर रजा सिद्दीकी ने दी। उन्होंने बताया कि इस त्योहार पर मिठाई की खरीदारी को लेकर बाजार में पूरे दिन चहल पहल बनी रहती है। उन्होंने बताया कि सूफी संत हजरत अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह का राज्य उस समय के गीलान प्रांत में हुआ करता था। जो वर्तमान में ईरान में है। वे पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के वंशज थे। उनकी मां इमाम हुसैन की वंशज थीं। जो पैगंबर मोहम्मद साहब के नाती थे। उन्हें इस्लाम को पुनर्जीवित करने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। नूरी मस्जिद के इमाम असरफ करीम कादरी ने बताया कि अपने उदार व्यक्तित्व व सूफी विचारधारा द्वारा वे कई लोगों को प्रभावित किये। वे सूफी इस्लाम के भी संस्थापक थे। उन्होंने बताया कि उनका जन्म 17 मार्च 1078 ईस्वी को गीलान राज्य में हुआ था। प्रत्येक वर्ष के अरबी कैलेंडर के रबी-उस-सानी महीने की11वीं तारीख को उनकी पुण्य तिथि को ग्यारहवीं शरीफ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग हजरत अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाह के नाम से फातिहा ख्वानी करते हैं। इसी तरह गया कर्बला में बाद नमाज असर चादरपोशी व सलात ओ सलाम का नजराना पेश की जाती है। इसके साथ ही अल्लाह से परिवार-समाज व देश-दुनिया के खैर-ओ-बरकत व अमन-शांति की दुआ मांगते हैं।