स्नेह रंजन


 "भूमि गिरत दसकन्धर ,

छुभित सिन्धु सरि दिग्गज भूधर"


रावण रणभूमि मे मरा।पर हमारी मनोभूमि पर वह राम के समानांतर जिन्दा क्यों है। यह सवाल हर संजीदा आदमी को परेशान करता है। क्या रावण राम को याद रखने का सबब है।पं विज्ञानिवास जी अपने निबन्ध संग्रह "छितवन की छांव "मे कहते है कि राम भारतीय मानकों को गढने वाले क्रांति द्रष्टा थे।जबकि रावण दस कुप्रवृत्तियों का धारक प्रतिनिधि था। इसलिए वह पाप बनकर पुण्य का पीछा करता रहेगा।

     आज विजयदशमी है। और मैं बुडापेस्ट मे डेन्यूब नदी के तट पर बैठा यह सोच रहा हूं कि नदियां, पहाड़,अग्नि, वायु और आकाश किस तरीके से इतिहास के साक्षी बनते हैं। राम ने इसको आचरण में उतारा। जबकि रावण ने इन सब का अपमान किया।योगवाशिष्ठय के दार्शनिक राम अयोध्या और लंका के बीच में किस तरह सांसारिक शौर्य का शालीन प्रतीक बन कर उभरे। क्या यही एक कारण पर्याप्त नहीं है कि हम उन्हें हर साल विजयदशमी पर याद करें और उनकी लीलाओं का मंचन करें।

      __डाक्टर लोहिया अपनी पुस्तक "राम कृष्ण और शिव"मे लिखते हैं कि राम धरती के ऐसे प्रथम पुरुष थे जिन्होंने परिवार ,समाज और देश के लिए सार्थक मूल्य गढे, सामाजिक न्याय के ऐसे रूपक प्रस्तुत किये। जिसे युगांतर तक कभी मिटाया नहीं जा सकेगा। उन्होंने क्षिति ,जल ,पावक, गगन ,समीर का इस हद तक आदर किया जिस हद तक रावण ने इनका निरादर किया था। लेकिन यह राम की लोक भूमिका थी। विद्यानिवास मिश्र कहते हैं कि राम के निजी जीवन का मूल्यांकन कभी नहीं हुआ। थोड़ा बहुत भवभूति ने प्रयास किया लेकिन वह नाटकों की शक्ल में था लोगों तक पहुंच नहीं पाया।

     ____ राजनीति में आज दलित सबसे बड़ा विषय है। राम ने भी इसका स्पर्श किया लेकिन करुणा के लिए मैत्री के लिए। यहां तक कि अपने राज्याभिषेक के शपथ ग्रहण में उन्होंने केवल निषाद राज को छोड़कर किसी को भी निमंत्रित नहीं किया। लक्ष्मण रेखा हो या राम के द्वारा रजक की बात को महत्व दिया जाना। डॉ लोहिया इसे संवैधानिक मर्यादा का पालन और उल्लंघन के रूप में देखते हैं।

    __और आज रामलीला प्रतिवर्ष इसलिए भी होती है कि रिश्तो की चासनी बनी रहे। राजनीति के मानक और मूल्य हमेशा जिंदा रहें। मरेंगे, परेंगे चुनाव जीत कर रहेंगे। यही करना है तो निश्चित रूप से विजयदशमी मनाना छोड़ देना चाहिए।सत्ता का कोई भी लटक बन जाने के लिए धरती आकाश एक कर देने वालों की आज कमी नहीं। अविश्वास का दौर ऐसा  कि आदमी ने खुद पर भी भरोसा करना छोड़ दिया। विजयदशमी के दिन रावण जलाने के लिए जाने वाले अलम्बरदारों से एक काल्पनिक अपेक्षा है कि रावण की ओर मुखातिब तीर आप कुछ वर्षों के लिए अपनी तरफ मोड़ लें। रावण का वजूद धीरे-धीरे मिटेगा और मिट जाएगा। रामराज की कल्पना का सब्जबाग महलों मंदिरों से पूरा नहीं होगा। उसके लिए रावण को मारना जरूरी है जो राजनीति में, समाज में और परिवारों में घुसकर वायरस बनकर बैठा हुआ है।