गाजीपुर के जमानियां में विजयदशमी पर तहसील मुख्यालय के सामने स्थित रामलीला मैदान पर राम-रावण के बीच भीषण युद्ध हुआ। जिसपर बुराई की अच्छाई पर हुई जीत को दर्शाया गया। इस दौरान दशानन की नाभि में राम ने तीर मारा तो विशालकाय दशानन धूं-धूंकर जल उठा। दशहरा पर राम-रावण युद्ध से पहले नगर कस्बा बाजार में रथ पर सवार भगवान श्रीराम। बताया जाता है। की दशहरा के दिन रामलीला मैदान पर रावण दहन कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस दौरान रामलीला कमेटी रामलीला मंचन के बाद दशहरा पर राम-रावण युद्ध लीला मंचन व विशालकाय दशानन दहन किया गया। इस अवसर पर भगवान श्री रामदल व रावण सेना युद्ध के लिए रथ पर सवार होकर तकरीबन 6 बजे शाम को रामलीला मैदान पहुंचे। इसदौरान एक ओर अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित रावण की असुर सेना, दूसरी ओर चट्टान उठाये भगवान राम की वानर सेना सभी उपस्थित पदाधिकारियों ने पूजा अर्चना की। हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपने नन्हे मुन्ने बच्चों सहित सम्पूर्ण श्री रामलीला आयोजन देख धर्म लाभ लिया। बता दें कि अधर्म के विरुद्ध धर्म, असत्य के विरुद्ध सत्य, अन्याय के विरुद्ध न्याय आज अपनी चुनौती लेकर खड़ा था| दोनों ही पक्षों के वीर, अपनी पूरी शक्ति के साथ सुसज्जित खड़े थे| एक ओर अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित रावण की असुर सेना, दूसरी ओर वृक्ष, चट्टान आदि उठाये भगवान राम की वानर और रीछों की सेना थी। एक ओर रावण अस्त्र-शस्त्रों से लदे अपने विशाल रथ पर सवार चला आ रहा था, दूसरी ओर भगवान राम धरती पर नंगे पाँव खड़े थे। यह देखकर भगवान राम के प्रति अपने प्रेम से अधीर होकर विभीषण  कहते हैं। हे नाथ! न आपके पास रथ है। ना ही आपके पैरों में खडाऊ तक हैं। रावण जैसे बलवान वीर से आप किस प्रकार जीत सकेंगे। विभीषण की बातों को सुनकर कहा कि जीवन-रण के विजय-रथ में शौर्य और धैर्य रुपी दो पहिये हैं। भगवान राम मुस्कराते हुए कहते हैं। सुनो मित्र! जिस रथ से विजय होती है। वह रथ ऐसा होता है। बता दें कि रणभूमि में रथ पर सवार रथी की पहचान के लिए रथ पर ध्वज और पताका (ध्वज के नीचे उससे थोड़े छोटे ध्वज को पताका कहते हैं, और इसी प्रकार होते हैं। जब तक ध्वज और पताका रणभूमि में दिखती रहती है। रथी सकुशल माना जाता है। जीवन के रण में विजय दिलाने वाले इस रथ के चार घोड़े हैं। बल, विवेक, दम और परहित यानी दूसरों की भलाई करना। भगवान राम बताते हैं। कि दंड देने का बल होने पर भी क्षमा और दया की संभावना हमेशा बनाये रखनी चाहिए। इस दौरान राम और रावण के बीच युद्ध मे रावण का वध हो जाता है। और रावण के वध के साथ प्रदूषण जैसी बुराइयों का प्रतीक जलाया जाता है। रावण के वध के साथ रोग, अपराध ,भ्रष्टाचार, गंदगी, लोभ, लालच, महिला उत्पीड़न, आज के दृष्टिकोण से मिलावट खोरी, टूटी सड़कें, सिल्ट से भरे नाले, अवैध निर्माण, अतिक्रमण, जाम, प्रदूषण जैसी बुराइयों का प्रतीक रावण को मानकर उसको जलाया गया। और जिसके बाद बुराइयों का अंत हुआ। मंचन देखने आई हजारों की संख्या में भक्त जनों की भीड़ इस लीला मंचन का आनंद लेती रही। और मेले में लगी अस्थाई खाने में खिलौनों की दुकानों में खरीदारी करती महिलाएं, पुरुष गणो के साथ बालिकाएं मौजूद रहे। 30 फुट ऊँचे रावण दहन किया गया। रावण दहन के पश्चात 2 घंटे से अधिक समय तक आतिशबाजी होती रही। आसमान में रंग-बिरंगे पटाखों की रोशनी से संपूर्ण तहसील मुख्यालय के आस पास के ग्रामीण क्षेत्र जगमगा गया। जिसका खूब भरपूर आनंद वहां मौजूद बच्चों व जनता ने उठाया। संपूर्ण लीला मंचन के लिए कलाकारों का उत्साहवर्धन किया गया। लीला मंचन का विश्राम मनीष प्रताप द्वारा किया गया। इस दौरान रामलीला मंचन का नगर कस्बा सहित ग्रामीण क्षेत्रों की जनता में उत्साह भरा रहा। इस दौरान एसडीएम अभिषेक कुमार, तहसीलदार राम नारायण वर्मा सहित

क्षेत्राधिकारी राम कृष्ण तिवारी,कोतवाली प्रभारी निरीक्षक आशेषनाथ सिंह, रविकांत सिंह, अखिलेश कुमार आदि मय पुलिस कर्मियों के साथ मेला स्थान से लेकर राम लीला मंच स्थान तक भ्रमण करते रहे। इसके साथ ही हजारों की संख्या में भक्तगण मौजूद रहे।