गाजीपुर के जमानियां उपजिलाधिकारी अभिषेक कुमार ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 38 साल पहले पारित एक विवादास्पद आदेश को निरस्त कर दिया। न्यायालय में सुनवाई के दौरान प्रस्तुत वाद पत्रों और दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद एसडीएम ने पाया कि 30 जून 1986 को पारित आदेश क्षेत्राधिकार से बाहर था और इसे बिना ग्रामसभा को पक्षकार बनाए तथा बिना सुनवाई का अवसर दिए पारित किया गया था। मामले का विवरण, यह मामला ग्राम सभा जीवपुर की गढ़ही आराजी संख्या 757, 767 और 768 के बदलेन (भूमि स्थानांतरण) से संबंधित था। आदेश के अनुसार, ग्राम सभा की इन आराजियों का स्थानांतरण कर अन्य व्यक्तियों के नाम दर्ज कर दिया गया था। जांच में यह स्पष्ट हुआ कि ग्राम सभा जीवपुर या अन्य किसी ग्राम सभा को इस प्रक्रिया में न तो पक्षकार बनाया गया और न ही उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर दिया गया। एसडीएम अभिषेक कुमार ने कहा कि जो आदेश क्षेत्राधिकार विहीन होता है, वह शून्य माना जाएगा। ग्राम सभा की आराजी को बिना अनुमति और बिना सुलहनामा प्रस्तुत किए स्थानांतरित करना कानूनी तौर पर गलत था।
तजबीजसानी और मियाद का मामला, एसडीएम ने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि मियाद (समय सीमा) की गणना जानकारी की तिथि से की जाती है। इसलिए, 24 सितंबर 2024 को प्रस्तुत प्रार्थना पत्र विधिक रूप से स्वीकार्य है। उन्होंने नामिका अधिवक्ता के प्रार्थना पत्र को स्वीकारते हुए तजबीजसानी (पुनरावलोकन) की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया। अवैध बदलेन और प्रभाव
पत्रावली के अवलोकन से यह भी सामने आया कि बदलेन प्रक्रिया में कई ग्रामों की आराजियां शामिल थीं, जिनमें मौजा जीवपुर, बेटावर, गंगबरार, तलवल और चंदौली जिले के रैथा जैसे स्थान शामिल थे। यह बदलेन कानूनी रूप से पोषणीय नहीं था। एसडीएम का फैसला
1. 1986 के आदेश को किया गया निरस्त: 30 जून 1986 को पारित आदेश को एकांगी (एकतरफा) और क्षेत्राधिकार से बाहर होने के कारण निरस्त कर दिया गया। 2. मूल वाद को किया गया पुनर्स्थापित: वाद को उसके मूल नंबर पर पुनः दर्ज करने का आदेश दिया गया।
3. अवैध बदलेन निरस्त: बदलेन प्रार्थना पत्र दिनांक 20 मई 1986 को भी निरस्त कर दिया गया। 4. पूर्व की खतौनी बहाल: बदलेन से पहले की खतौनी में दर्ज रिकॉर्ड को दुरुस्त कराने का निर्देश दिया गया। 38 साल बाद न्याय इस फैसले से ग्राम सभा जीवपुर की आराजी पर वर्षों से चले आ रहे विवाद का निपटारा हो गया है। एसडीएम अभिषेक कुमार के इस निर्णय को न्यायहित में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। क्षेत्र के लोगों ने एसडीएम की इस निष्पक्ष और साहसिक कार्रवाई की सराहना की है।