रिपोर्ट: आशीष गुप्ता 
गाज़ीपुर। कासिमाबाद ब्लाक के गंगौली गांव में स्वच्छ भारत मिशन की योजनाओं का जिस तरह से उल्लंघन हो रहा है, वह एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। यहां की स्थिति ऐसी हो गई है जैसे किसी खेत में पानी देने के बजाय उसमें कीचड़ डाल दिया गया हो। स्वच्छता की उम्मीद में शुरू की गई योजनाएं अब भ्रष्टाचार की दलदल में फंसकर न केवल कामयाब नहीं हो पा रही हैं, बल्कि गांव में गंदगी और कूड़े के ढेर लग गए हैं।

ग्राम प्रधान इमराना खातून और उनके प्रतिनिधि सैफ असलम उर्फ राजू के अलावा रोजगार सेवक महताब अंसारी और सचिव असलम अंसारी पर आरोप हैं कि वे सरकारी योजनाओं का ठीक से पालन नहीं कर रहे। यह चारों मिलकर योजनाओं का लाभ नहीं उठाते, बल्कि उसे अपनी जेब भरने के लिए मोड़ देते हैं। ठीक वैसे जैसे कोई गेंद को गोल पोस्ट के बजाय अपनी टीम के खिलाफ ही शूट कर दे। इन अधिकारियों की मिलीभगत के कारण स्वच्छ भारत मिशन की उम्मीदें धराशायी हो रही हैं, और यह योजना गंगौली गांव के लिए एक भ्रामक सपना बनकर रह गई है।

गांव में कूड़े के ढेर हर गली-नुक्कड़ पर फैले हुए हैं और खुले में कचरा फेंकने की समस्या हर दिन बढ़ती जा रही है। यह स्थिति गांववासियों के लिए बेहद कठिन हो गई है। जैसे किसी घर में खाना बनाना हो, लेकिन चूल्हे की आग ही बुझ गई हो, उसी तरह यहां के लोग स्वच्छता की उम्मीद में अपने घरों से बाहर निकलते हैं, लेकिन उनका रास्ता और उनकी उम्मीदें दोनों ही कचरे से ढके हुए हैं।

स्थानीय लोग अब थक चुके हैं और उनका कहना है कि, "हमारी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं है। ग्राम प्रधान और उनके सहयोगी केवल अपनी जेब भरने में लगे हुए हैं, जबकि हम साफ-सुथरे वातावरण की तलाश में हैं।" यह बिल्कुल उसी तरह है जैसे कोई व्यक्ति बारिश के मौसम में छाता खोले खड़ा हो, लेकिन उसे सुरक्षा के बजाय और भी ज्यादा गीला कर दिया जाए। स्वच्छ भारत मिशन की सफलता के लिए सरकारी धन का सही उपयोग और अधिकारियों की जिम्मेदारी निभाना आवश्यक है। यदि गंगौली गांव में भ्रष्टाचार इसी तरह चलता रहा, तो यह मिशन अपने उद्देश्य को कभी पूरा नहीं कर सकेगा, और स्थानीय लोग न्याय की उम्मीद में नकारात्मकता से घिरते जाएंगे। यह कोई चमत्कारी हल नहीं है, बल्कि सच्चाई यही है कि योजना के सफल कार्यान्वयन के लिए प्रशासन की नीयत और काम दोनों में पारदर्शिता होना जरूरी है।