गाजीपुर के आदर्श दिलदारनगर नगर पंचायत चैयरमैन अविनाश जायसवाल दूसरे के दुख दर्द को समझना तथा उसके निस्तारण के साथ भरपूर सहयोग करना स्वाभाविक गुण है। घर में अस्त व्यस्त, ऊटपटांग कपड़ों, तेल और मसाले की गंध से सराबोर महिलाएं और पसीने से बदबू मारते पुरुष जब बाहर निकलते हैं। तो एकदम सजे धजे रहते हैं। ताकि लोग उन्हें देखें और उनके पहनावे, रूप-सौंदर्य की प्रशंसा करें। आदर्श दिलदारनगर नगर पंचायत के चेयरमैन अविनाश जायसवाल के मन में यही चाहत रहती है। सभी लोग खुशहाल जिंदगी जिए। और हर व्यक्ति की निगाह ऐसे विकास कराने वाले व्यक्ति पर ठहरत है। तथा उनके अंदर एक ऐसा स्वाभाविक गुण है। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। जब तक उनके द्वारा कराया गया कार्य की सहज प्रशंसा हर तरफ होनी चाहिए। चेयरमैन अविनाश जायसवाल ने संवाददाता सलीम मंसूरी से एक भेट वार्ता में बताया कि गड़बड़ तब होती है। जब देखने वाला अनधिकार चेष्ठा कर बैठता है। ठीक वैसे ही प्रतिस्पर्धा भी मनुष्य की सहज प्रवृत्ति है। सदियों से वह प्रतिस्पर्धा करता आया है। अपने भाइयों, बहनों, रिश्तेदारों और गांव-समाज के लोगों से। जब तक प्रतिस्पर्धा स्वस्थ रहती है यानी समाज और कानून द्वारा मान्य नियमों और परंपराओं के मुताबिक होती है। तो प्रतिस्पर्धा विकास की ओर ले जाती है। लेकिन जहां इससे डिगे, वहीं बात गड़बड़ हो जाती है। हमारे जीवन के हर पहलू में प्रतिस्पर्धा शामिल है। लेकिन धीरे-धीरे समस्या समाधान कराना, हर तरफ विकास ही विकास दिखाई दें। मानो वह व्यक्ति समाज सुधार है। उन्होंने कहा कि अगर हम अपने देश में ही गंभीरता से विचार करें। तो हमारे हर क्रिया कलाप में दिखावा और प्रतिस्पर्धा एक साथ मिलकर एक नया ही आयाम बना रही है। जायसवाल ने बताया कि धार्मिक मामलों में भी कहीं न कहीं दिख ही जाता है। उसकी गणपति गणेश की मूर्ति दो फीट की है। तो हमारी तीन या पांच फीट की होनी ही चाहिए। छोटी मूर्ति लाने पर लोग क्या कहेंगे। उस धर्म के वालों ने इतना बड़ा जुलूस निकाला। हम भी इससे बड़ा जुलूस निकालेंगे। ऐसी प्रतिस्पर्धाएं हमें एक अंधे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती हैं। फिर या तो पतन होता है। या फिर थोड़ी सावधानी बरतने पर इससे निजात मिल जाती है। जीवन का असली सुख सहजता में ही है। सहज रूप से सजना, कोई बुरा नहीं है। जीवन का सारा सुख सहज रहकर उठाया जा सकता है। सहज न रहने से ही समाज में नकारात्मकता बढ़ रही है। लोगों का आपसी प्रेम, भाईचारा और सौहार्द बिगड़ रहा है। सामाजिक बिखराव के रास्ते पर हम दिनोंदिन अग्रसर होते जा रहे हैं। अविश्वास की गहरी खाई खोदी जा रही है। मामूली सी बातों पर कत्ल हो रहे हैं। बच्चे तक उग्र हो रहे हैं। आक्रामक हो रहे हैं। यह सब करके हम कौन सा समाज रच रहे हैं। लोग यह समझने को तैयार नहीं हैं। हमारी इस नासमझी का फायदा दूसरे लोग उठा रहे हैं। लोग दूर खड़े होकर हमारी नकारात्मकता न सिर्फ बढ़ा रहे हैं, बल्कि उसका उपयोग कभी धर्म के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर कर रहे हैं। लेकिन अविनाश जायसवाल बड़ी से बड़ी छोटी से छोटी समस्याओं को निदान कराने के साथ विकास की नींव रखने के लिए पैदा हुआ है। मेरा मकशद सिर्फ जमानियां में विकास की गंगा बहाना है। इसके लिए पूरी नक्शा बना लिया गया है। उसको धरातल पर लाकर दिखाना मेरा मकशद है।