गाजीपुर। ऑल इंडिया टीचर एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष मुफ्ती हैदर वहीदी और अकबर अंसारी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसका सीधा असर उत्तर प्रदेश के 10,500 मदरसा शिक्षकों और लाखों छात्रों पर पड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट की वैधता को बरकरार रखते हुए यह आदेश दिया कि प्रदेश में मदरसा एक्ट जारी रहेगा, जिसके तहत मदरसे चलते रहेंगे और 16,000 मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में भेजे जाने का कोई आदेश नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया था, जिसमें मदरसा एक्ट को असंवैधानिक करार दिया गया था। इस फैसले से मदरसा शिक्षकों और छात्रों में राहत की लहर है। कोर्ट ने कहा कि यूपी मदरसा एक्ट के सभी प्रावधान मूल अधिकारों या संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का उल्लंघन नहीं करते हैं।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मदरसों को UG (स्नातक) और PG (परास्नातक) डिग्रियां देने का अधिकार नहीं है, क्योंकि यह अधिकार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) से संबंधित है। इस पर रोक लगाते हुए, कोर्ट ने यूपी सरकार को निर्देशित किया कि मदरसा बोर्ड को ये डिग्रियां देने का अधिकार नहीं है।
मदरसा एक्ट के खिलाफ हाईकोर्ट के फैसले के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने 5 अप्रैल 2024 को इस फैसले पर रोक लगाई थी और केंद्र तथा यूपी सरकार से इस मुद्दे पर जवाब मांगा था। इसके बाद, 22 अक्टूबर 2024 को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई, जिसमें कोर्ट ने मदरसा एक्ट को धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन नहीं माना और कहा कि यह देश की भावना के अनुरूप है।
मिनहाज अंसारी ने कहा, "कोर्ट के इस फैसले से मदरसा संचालकों, शिक्षकों और छात्रों के परिजनों को राहत मिली है, लेकिन अब मदरसा प्रबंधकों और शिक्षकों की जिम्मेदारी बढ़ गई है। उन्हें बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के साथ-साथ मुख्य धारा से जोड़ने के लिए अपनी भूमिका सुनिश्चित करनी होगी।"
अकबर अंसारी ने कहा कि कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि मदरसों के छात्रों को दूसरे स्कूलों में ट्रांसफर करने का निर्देश देना सही नहीं होगा। यह फैसले ने साबित किया कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ केवल हर धर्म का सम्मान करना और सभी को समान अवसर देना है।