गाजीपुर। शहर के लंका मैदान में आयोजित फन लैंड मेला इस बार सुरक्षा के अभाव में गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है। जहां एक ओर लोग इस मेले में झूले, खेल और अन्य मनोरंजन के साधनों का आनंद लेने आते हैं, वहीं दूसरी ओर मेले में सुरक्षा के इंतजामों की स्थिति इतनी खतरनाक है कि वहां झूलों पर बैठना भी अब एक जोखिम बन गया है। जब पत्रकारों ने फन लैंड मेला के झूला सेक्टर का दौरा किया, तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं, जो सुरक्षा के नाम पर भारी लापरवाही को दर्शाती हैं।
मेला परिसर में न तो फायर सेफ्टी के कोई ठोस इंतजाम हैं, और न ही प्राथमिक उपचार (फर्स्टएड) की कोई व्यवस्था की गई है। झूलों की सुरक्षा को लेकर स्थिति इतनी गंभीर है कि झूलों के आसपास फायर सेफ्टी के छोटे सिलेंडर तक नहीं रखे गए। यदि कोई अप्रत्याशित घटना घटती है, जैसे आग लगना या अन्य कोई दुर्घटना, तो तुरंत राहत देने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। यहां तक कि अगर कोई व्यक्ति झूलते वक्त दुर्घटना का शिकार होता है, तो उसे प्राथमिक उपचार देने के लिए भी फर्स्टएड किट की कोई व्यवस्था नहीं है।
इस संबंध में जब पत्रकारों ने दुकानदारों से पूछा, तो उनके पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं था। दुकानदारों का कहना था कि वे सेफ्टी सर्टिफिकेट और बीमा के बारे में अधिक जानकारी नहीं दे सकते। यही नहीं, मेले में जो सेफ्टी सर्टिफिकेट प्रदान किए गए हैं, उन में भी कई खामियां हैं। इन सर्टिफिकेट्स में झूलों में उपयोग होने वाली मशीनों के बारे में जानकारी पूरी तरह से गलत या अधूरी है, जिससे यह पता नहीं चल पा रहा है कि ये मशीनें कितनी सुरक्षित हैं और इनके संचालन से कोई बड़ा खतरा तो नहीं उत्पन्न हो सकता।
इसके अलावा, इन मशीनों की बिजली खपत के बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी गई है, जिससे यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि इन मशीनों के संचालन से बिजली पर क्या असर पड़ सकता है। इस स्थिति का लाभ झूला संचालकों ने उठाया है और बिना किसी कनेक्शन के झूलों को चलाया हुआ है, जिससे बिजली का अत्यधिक उपयोग हो रहा है। यह स्थिति न केवल बिजली की खपत को बढ़ाती है, बल्कि संभावित बिजली संकट का भी कारण बन सकती है।
सुरक्षा के संदर्भ में सबसे चिंताजनक बात यह है कि यदि मेले में किसी व्यक्ति के साथ गंभीर दुर्घटना होती है और वह घायल हो जाता है, तो उसकी मदद के लिए वहां एक भी एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं की गई है। पत्रकारों ने मेला परिसर में जाकर देखा, लेकिन वहां एक भी एंबुलेंस नजर नहीं आई। न ही कोई ऐसी व्यवस्था थी जिससे घायल व्यक्ति को तत्काल उपचार मिल सके। यह स्थिति बेहद गंभीर है, क्योंकि कोई भी बड़ी दुर्घटना तुरंत उपचार की आवश्यकता को जन्म देती है, और ऐसी स्थिति में अगर एंबुलेंस और चिकित्सा सुविधाएं न हों, तो यह जीवन को खतरे में डाल सकता है।
झूला संचालकों ने भी इस मुद्दे को नजरअंदाज किया है और फर्स्टएड किट तक अपने पास नहीं रखी है। इसका मतलब यह है कि यदि किसी व्यक्ति को चोट लगती है या कोई अन्य आपातकालीन स्थिति उत्पन्न होती है, तो वहां तत्काल राहत देने के लिए कोई भी साधन उपलब्ध नहीं है। इस तरह की लापरवाही से मेले में सुरक्षा के नाम पर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है।
इस प्रकार के लापरवाह सुरक्षा इंतजामों से न केवल स्थानीय प्रशासन की कार्यक्षमता पर सवाल उठते हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट होता है कि मेला आयोजकों और झूला संचालकों के लिए जनता की सुरक्षा कोई प्राथमिकता नहीं है। यह स्थिति केवल स्थानीय प्रशासन की नाकामी नहीं है, बल्कि यह मेले के आयोजकों और संबंधित अधिकारियों की भी लापरवाही का परिणाम है। अगर यही स्थिति बनी रही, तो भविष्य में यहां कोई बड़ा हादसा हो सकता है, जिससे लोगों की जान और माल को गंभीर खतरा हो सकता है।
प्रशासन को तत्काल इस मामले पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्हें मेला आयोजकों से कड़े सुरक्षा मानकों का पालन करने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि फायर सेफ्टी उपकरण, प्राथमिक उपचार किट, एंबुलेंस और अन्य आवश्यक सुरक्षा उपाय मेले में पूर्ण रूप से उपलब्ध हों। इसके अलावा, झूलों के संचालन से संबंधित मशीनों की सुरक्षा और बिजली के उपयोग की जांच भी की जानी चाहिए। प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि मेला क्षेत्र में कोई भी सुरक्षा उल्लंघन न हो और हर स्थिति में जनता की सुरक्षा सर्वोत्तम प्राथमिकता हो।
यदि प्रशासन ने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो न केवल मेले की छवि पर बुरा असर पड़ेगा, बल्कि स्थानीय लोगों की सुरक्षा और जीवन भी खतरे में पड़ सकते हैं। इसलिए, प्रशासन को इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए और मेले में सुरक्षा को सबसे महत्वपूर्ण पहलू मानकर इसे सुदृढ़ बनाना चाहिए।