गाजीपुर। गाजीपुर में अब पत्रकारिता के नाम पर दलाली और वसूली का एक नया खेल शुरू हो गया है, जो सरकारी विभागों में सक्रिय हो चुका है। यह एक बड़ा सवाल खड़ा करता है कि आखिर क्यों कुछ तथाकथित पत्रकार एआरटीओ (संभागीय क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय) में अपनी फाइलें लगाकर वसूली का धंधा कर रहे हैं? इन फर्जी पत्रकारों के बारे में जानकारियां सामने आ रही हैं, जिससे यह साबित होता है कि यह लोग पत्रकारिता के नाम पर सरकारी विभागों से पैसा वसूलने का काम कर रहे हैं।

 पिछले कुछ वर्षों से फर्जी पत्रकारिता का नेटवर्क तेजी से फैल रहा है। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव और सस्ते उपकरणों ने इसे और भी बढ़ावा दिया है। कुछ लोग महज 150 रुपये का माइक, फेसबुक और यूट्यूब चैनल बनाकर खुद को पत्रकार घोषित कर लेते हैं। लेकिन, यह पत्रकारिता की आड़ में वसूली और ठगी का धंधा करने में जुटे हुए हैं।

इन फर्जी पत्रकारों की सक्रियता मुख्य रूप से पुलिस थाने, ब्लॉक ऑफिस, नगर पालिका, शराब ठेके, और एआरटीओ जैसे सरकारी दफ्तरों में देखी जाती है। इनका काम होता है लोगों को डराकर, धमकाकर, और कभी-कभी तो पूरी तरह से ब्लैकमेल करके पैसे वसूलना।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, गाजीपुर में आरटीओ दफ्तर में डील और दलाली का काम जोरों पर है। एक अनुमान के अनुसार, डेली तीन से चार फाइलें तथाकथित पत्रकारों द्वारा आरटीओ में लगाई जाती हैं। इसके बदले में ये पत्रकार दलालों से ₹1200 प्रति फाइल लेते हैं। मतलब अगर एक दिन में चार फाइलें लगाई जाती हैं तो उस दिन की आय ₹4800 हो जाती है। इसी हिसाब से एक हफ्ते में इनकी आय ₹9600 तक पहुंच जाती है। महीने के हिसाब से देखा जाए तो इन तथाकथित पत्रकारों की ब्लैक कमाई ₹38,400 तक पहुंच जाती है।

इन फर्जी पत्रकारों का काम सिर्फ फाइल लगाने तक सीमित नहीं है। वे सोशल मीडिया का भी इस्तेमाल करते हैं। कई बार ये लोग पुरानी वीडियो और ट्वीट्स के जरिए लोगों को धमकाते हैं और फिर इनसे सौदेबाजी करते हैं। कभी-कभी, ये ट्वीट्स के बदले में पैसे वसूलते हैं। इस प्रकार ये लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का भी गलत इस्तेमाल कर रहे हैं।

यह सवाल अब उठता है कि आखिर क्यों एआरटीओ अधिकारी और जिला प्रशासन इन तथाकथित पत्रकारों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। जब ये पत्रकार सरकारी विभागों में अपनी फाइलें लगाकर पैसे वसूल रहे हैं, तो क्यों नहीं इन पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है? प्रशासन को इस मुद्दे पर सख्ती से काम करने की आवश्यकता है ताकि इस तरह के धोखेबाजों का खात्मा किया जा सके।

गाजीपुर में यह फर्जी पत्रकारों का आतंक जैसे कुकुरमुत्तों की तरह फैल चुका है। इनका असर अब आम लोगों की जिंदगी पर भी पड़ने लगा है। सरकार और प्रशासन के लिए यह एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। यदि प्रशासन समय रहते कार्रवाई नहीं करता है, तो यह समस्या और बढ़ सकती है।

इस स्थिति को सुधारने के लिए, प्रशासन को तत्काल कदम उठाने होंगे। अगर एआरटीओ विभाग या जिला प्रशासन इन तथाकथित पत्रकारों पर कार्यवाही करें तो उनकी अवैध गतिविधियों पर रोक लगाई जा सकती है। इसके साथ ही, अगर एक-दो उदाहरण सामने आएंगे, तो अन्य लोग इनका अनुसरण करने से डरेंगे।

गाजीपुर में फर्जी पत्रकारिता और वसूली का यह धंधा एक गंभीर समस्या बन चुका है। प्रशासन और संबंधित विभागों को इस पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए ताकि लोगों का विश्वास सरकारी तंत्र पर बना रहे। अगर यही स्थिति बनी रही तो इस समस्या का समाधान मुश्किल हो सकता है।