दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (AAP) की हार को लेकर कई महत्वपूर्ण राजनीतिक ताकतों का योगदान था। इन ताकतों में भाजपा-संघ परिवार, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और जन आंदोलन का गठबंधन शामिल था। ये तीन प्रमुख शक्तियाँ एकजुट हो कर केजरीवाल को हराने के लिए मैदान में उतरीं और अंततः उनकी हार का कारण बनीं।
भा.ज.पा. और संघ परिवार का दबदबा
भा.ज.पा. और संघ परिवार ने पूरे चुनावी अभियान में अपने व्यापक संगठनात्मक ढांचे का भरपूर उपयोग किया। भाजपा के उम्मीदवार प्रवेश वर्मा के नेतृत्व में भाजपा ने न केवल केजरीवाल की नीतियों की आलोचना की, बल्कि उनके कार्यकाल की नाकामियों को भी प्रमुखता से उठाया। संघ परिवार की सशक्त टीम ने इस अभियान को जनता तक पहुँचाने का काम किया और भाजपा को एक ठोस चुनावी मंच प्रदान किया, जो AAP के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हुआ।
कांग्रेस और संदीप दीक्षित का विरोध
भारत में कांग्रेस पार्टी की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका रही, विशेषकर संदीप दीक्षित के नेतृत्व में। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की प्रतिष्ठा और उनके परिवार के सम्मान के कारण कांग्रेस ने इस क्षेत्र में केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोला। संदीप दीक्षित ने इस चुनाव में अपनी माँ की राजनीतिक विरासत की रक्षा के लिए पूरा जोर लगाया। कांग्रेस ने AAP की नीतियों और उनकी सरकार के प्रदर्शन पर कई सवाल उठाए, जिससे केजरीवाल को एक गंभीर राजनीतिक चुनौती मिली।
जन आंदोलन और भारत गठबंधन की भूमिका
लेकिन, इन सभी ताकतों में सबसे अहम तीसरी ताकत थी, जो थी जन आंदोलन और भारत गठबंधन। यह गठबंधन राम नगीना सिंह के नेतृत्व में 23 सामाजिक आंदोलनों और स्वाभिमान पार्टी के अध्यक्ष के नेतृत्व में 80 से अधिक छोटे राजनीतिक दलों का गठबंधन था। जन आंदोलन का मुख्य उद्देश्य अरविंद केजरीवाल के खिलाफ एक व्यापक विरोधी अभियान चलाना था। राम नगीना सिंह ने आरोप लगाया कि केजरीवाल ने अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की विचारधारा की हत्या कर दी और हजारों युवाओं और कार्यकर्ताओं के करियर और पारिवारिक जीवन को बर्बाद कर दिया। इसी प्रकार जन आंदोलन अभियान में शामिल प्रमुख संगठन सद्दा खिर्डा पंजाब के प्रमुख सरदार अमनजोत सिंह के अनुसार IAPC के कुशल रणनीति व छोटे दलों और आंदोलनकारी संगठनों के साथ समुचित समन्वय प्रबंधन से ही नई दिल्ली विधानसभा सीट से केजरीवाल की हार सुनिश्चित हो पाई l एक आंदोलन से ही केजरीवाल को पहचान मिली थी और आंदोलनकारियों ने ही केजरीवाल की लुटिया डुबोई l
IAPC का रणनीतिक नेतृत्व
इस अभियान को मजबूती प्रदान की भारतीय एसोसिएशन ऑफ पॉलिटिकल कंसल्टेंट्स (IAPC) द्वारा, जो अभिषेक के नेतृत्व में काम कर रहा था। अभिषेक, जो पहले अन्ना आंदोलन और AAP के सदस्य रहे थे, ने 2014 में AAP छोड़ने के बाद अपनी राजनीतिक परामर्श फर्म पॉलिटिक्स की शुरुआत की। IAPC के तहत कई छोटे दलों और सामाजिक आंदोलनों को एकजुट किया गया। अभिषेक के नेतृत्व में IAPC ने "केजरीवाल_को_हर_बूथ_हराओ" जैसे अभियान चलाए और दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाया।
जमीनी स्तर पर रणनीति
IAPC ने जन आंदोलन और भारत गठबंधन के साथ मिलकर 22 जनवरी से 5 फरवरी 2025 तक दिल्ली और पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों में केजरीवाल विरोधी अभियान चलाया। उन्होंने चुनावी रणनीति को लेकर कई महत्वपूर्ण बदलाव किए और जनता के बीच केजरीवाल की नीतियों और उनके भ्रष्टाचार के आरोपों को प्रमुखता से रखा। इन ताकतों ने संयुक्त रूप से अपने मिशन को पूरा करने के लिए 8 अलग-अलग टीमों का गठन किया, जिनका लक्ष्य था केजरीवाल को हर बूथ पर हराना।
निष्कर्ष
नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र 2025 में अरविंद केजरीवाल की हार का कारण केवल भाजपा और कांग्रेस का विरोध नहीं था, बल्कि जन आंदोलन और भारत गठबंधन का एकजुट अभियान भी था। इन राजनीतिक ताकतों ने अपनी-अपनी रणनीतियों के माध्यम से केजरीवाल की छवि को धूमिल किया और अंततः उनका चुनावी अभियान विफल कर दिया। IAPC की कुशल रणनीति और नेतृत्व ने इस विरोध को प्रभावी बनाया और अरविंद केजरीवाल और उनके समर्थकों के लिए नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में 2025 का चुनावी परिणाम एक कड़ा झटका साबित हुआ।(वीएनएफए/विस)