(वीएनएफए/वि.न्यूज)

वाराणसी। कैंसर एक ऐसा नाम जिसे सुनकर बड़े से बडा बहादुर भी एक बार सदमें में आ जाये वही अगर किसी को यह बीमारी हो जाये समझो उसका जीवन ही खत्म! ऐसे में अगर कोई इस बीमारी से बचकर सही सलामत रहे तो यह वास्तव में उसका दूसरा जीवन ही माना जाता है। विगत दस वर्षो में कैंसर ने अपनी जड़े बहुत अन्दर तक जमा चुकी है आज देश के हर दस में से छहः नागरिक इस बीमारी से पीड़ित है और ना जाने कितनो की जाने चली गयी और कितनो का सुहाग उजड़़ गया तथा कितने बच्चों से उनके पिता का साया उठ गया और कितनें मा-बाप से उनके बेटे बिछड गये पर यह बीमारी कम होने का नाम ही नही ले रही है। 

ऐसे में काशाी के एक नौजवान जिसकी अभी नर्ह नर्ह शादी हुई थी] जीवन हसीं खुशी चल रहा था तभी एक दिन पता चलता है कि उसे मुंह का कैंसर है सुनते ही उसके पांव तले जमीन खिसक गयीA मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाला वह इन्सान अन्दर से एकदम टूट गया] पर परिवार और पत्नी को दुःख ना हो यह सोचकर वह हिम्मत रखकर बोला कि बम्बई जाकर एक बार चेक करायेगा। यह बात सन् 2018 की है जब पहली बार बाम्बे के टाटा मेमेारियल हास्पिटल में अपनी कैंसर की जांच कराने गये धीरज सिन्हा बताते है कि उस वक्त का मंजर देखकर ऐसा लगा कि मेरी बीमारी तो कुछ भी नही है यहां तो बहुत ही तरह के मरीज और उनके परिवार के लोग इलाज के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे।

ईश्वर की कृपा और सभी के आर्शीवाद से आज धीरज सिन्हा स्वस्थ जीवन जी रहे है और यही नही खुद भी इस बीमारी से लोगों केा जागरूक करने का बीड़ा उठाया है। अपने सफल इलाज के बाद उस वक्त की परेशानियों और शारीरिक झंझावातों को झेलते हुए उनकी पत्नी रचना ने बहुत संघर्ष किया] मात्र 31 वर्ष की आयु में पहली बार अपने शहर से बाहर अकेले अपने पति को लेकर कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का इलाज कराने और उस दौरान होने वाली परेशानियों को अकेले झेलते हुए संघर्ष कर आखिर अपने पति को सही सलामत ठीक करा कर घर लायी। 

इस अनुभव ने मुझे प्रेरित किया कि मैं कुछ ऐसा करूं] जो न केवल मेरे लिए] बल्कि दूसरों के लिए भी फायदेमंद हो। मैंने एक एनजीओ की स्थापना की] जिसका उद्देश्य कैंसर और इसके कारणों के प्रति जागरूकता फैलाना है। मैं चाहता था कि लोग इस बीमारी के बारे में ज्ञान प्राप्त करें] ताकि वे जल्दी से जल्दी पहचान सकें और उपचार के लिए कदम उठा सकें। 

मेरी एनजीओ के माध्यम से] मैंने कैंसर के इलाज] उसके लक्षणों और रोकथाम के तरीकों पर कई कार्यक्रम आयोजित किए। हम स्कूलों] कॉलेजों और समाज के विभिन्न हिस्सों में जाकर लोगों को जानकारी देते हैं। मैं कई कैंसर सर्वाइवर के साथ भी काम करता हूं, जो अपने अनुभवों को साझा करके दूसरों को प्रेरित करते हैं। 

वर्तमान में धीरज सिन्हा और उनकी पत्नी रचना ने मिलकर कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से बचाव करने एवं लोगों को इससे जागरूक करने के लिए वर्ष 2018 मे   ‘‘रचना फाउण्डेशन’’ नामक संस्था की स्थापना की जिसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से लोगो को जागरूक करना और कैंसर के इलाज में हर तरह की सहायता प्रदान करना जैसे कि मुख्यमंत्री द्वारा मिलने वाली आर्थिक चिकित्सा सहायता को जनप्रतिनिधयों के माध्यम से दिलवाना, उनको मानसिक रूप से काउसलिंग कर बीमारी से लड़ने के लिए तैयार करना साथ ही परिवार के लोगों इस दौरान मरीज को देने वाले खाने-पीने के सामानो एवं उनकी देखभाल कैसे की जाये इसके लिए तैयार करना आदि शामिल है।

मुझे गर्व है कि मैं उन लोगों के लिए आवाज बन पाया हूं जो इस बीमारी से प्रभावित हैं। मैंने देखा है कि जब लोग एक-दूसरे का साथ देते हैं और एकजुट होते हैं] तो वे इस कठिन समय में भी उम्मीद और साहस का संचार कर सकते हैं। 

आज] जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं] तो मुझे लगता है कि मेरी बीमारी ने मुझे एक नई दिशा दी है। मैंने सीखा है कि जीवन में चुनौतियों का सामना करना जरूरी है] लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण है कि हम दूसरों की मदद करें और उनके साथ खड़े रहें।  मैं और मेरे साथी मिलकर कैंसर के खिलाफ एक सकारात्मक बदलाव ला सकें] और जब भी कोई कैंसर के बारे में सुने] तो वह न केवल डर के साथ] बल्कि समझ और साहस के साथ उसका सामना करे।