गाज़ीपुर से विशेष संवाददाता

गाज़ीपुर। श्री गंगा आश्रम की पुण्यभूमि पर आयोजित ४७वें मानवता अभ्युदय महायज्ञ का तीसरा दिन भी अध्यात्म, ज्ञान और भक्ति की त्रिवेणी में सराबोर रहा। नवाह्न पारायण में श्रीरामचरितमानस की पावन चौपाइयों की गूंज से समूचा वातावरण राममय हो उठा, वहीं वैदिक हवन की अग्निशिखाएं लोकमंगल की कामना में प्रज्वलित होती रहीं।

दूर-दराज़ से उमड़ते श्रद्धालुओं की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। आश्रम के संतों और स्वयंसेवकों की सेवा भावना देखते ही बनती है, हर आगंतुक के भोजन, आवास और स्वागत की व्यवस्था अत्यंत सुचारू ढंग से की जा रही है। यह आयोजन श्रद्धालुओं की दृष्टि में सदगुरु बाबा गंगारामदास की दिव्य कृपा का ही परिणाम है, जो आज लोकदेवता के रूप में पूजनीय हो चुके हैं।

सायंकालीन सत्संग सभा में प्रसिद्ध साहित्यकार माधव कृष्ण ने “विवेक चूड़ामणि” पर आधारित श्रृंखला में गूढ़ विचार प्रस्तुत करते हुए कहा, “धन, आयु, संपत्ति

इनका स्थायित्व कर्मों से नहीं, ज्ञान और भक्ति से संभव है। अमरत्व की खोज में मानव ने अनेक प्रयास किए, लेकिन उसका समाधान केवल श्रीराम के चरणों में है।” उन्होंने स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस के गुरु-शिष्य संबंध को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करते हुए कहा कि जब तक अपने लक्ष्य स्पष्ट न हों, तब तक गुरु के लक्ष्य को ही आत्मसात कर लेना चाहिए।

बापू जी ज्ञानदीपक की व्याख्यानमाला ने भी उपस्थितों को आत्मचिंतन के गहरे भाव में डुबो दिया। उन्होंने कहा, “धर्म ही सुख का मार्ग है। लेकिन अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाने के लिए आत्मा में प्रकाश जगाना आवश्यक है। यह प्रकाश श्रद्धा, संयम और सदाचार के दीपक से ही उत्पन्न हो सकता है। सात्त्विक श्रद्धा रूपी गाय जब धर्म की हरी घास खाती है, तभी ज्ञान का पवित्र दुग्ध हमें प्राप्त होता है।”

उन्होंने वैष्णव आचार्य रामानंद द्वारा प्रतिपादित शरणागति मार्ग का उल्लेख करते हुए कहा, “जब जीव अपने सामर्थ्य की अंतिम सीमा पर पहुंच जाता है और आत्मसमर्पण करता है, तब भगवान राम स्वयं उसकी सहायता के लिए दौड़ पड़ते हैं। यही कारण है कि यह यज्ञ केवल कर्मकांड नहीं, आत्मोद्धार का साधन बन चुका है।”

तीसरे दिन का समापन गुरु अर्चना, ईश्वर विनय, परिक्रमा, और सार्वजनिक प्रसाद वितरण के साथ हुआ। आश्रम के महंत भोला बाबा स्वयं पूरे आयोजन की सतत निगरानी में लगे रहे, जिससे हर चरण व्यवस्थित और भव्य बना रहा।

मानवता के इस अद्वितीय महायज्ञ ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि जब श्रद्धा, सेवा और साधना का संगम होता है, तब आध्यात्मिक जागरण स्वयं पथ दिखाने आता है।