गाज़ीपुर: 47वाँ मानवता अभ्युदय महायज्ञ का अंतिम दिन श्रीगंगा आश्रम में एक विशाल शोभा यात्रा, मां गंगा की विदाई यात्रा, गंगा पूजन, सत्संग और एक विशाल महाभंडारे के साथ संपन्न हुआ। श्रद्धालु सायंकाल से ही दूर दराज के क्षेत्रों से श्री महाराज जी की जय बोलते हुए ट्रैक्टर, ऑटो, कार इत्यादि से आना प्रारंभ कर दिए थे। जिसे जो सेवा समझ में आई, उसने करना शुरू कर दिया। किसी ने झाड़ू थामी तो किसी ने पत्तल पर खाना परोसा तो किसी ने पत्तल फेंकने की जिम्मेदारी ली। विभिन्न सम्प्रदायों के संत और महामंडलेश्वर भी आश्रम में आए। बलिया के प्रोफेसर शिवेश राय ने कहा कि आज जब पूरा समाज जातिवादी संकीर्णता और सांप्रदायिक उन्माद से जूझ रहा है, उस समय ऐसी समानता वाली व्यवस्था जिसमें सभी एक साथ बैठ रहे हैं, एक जैसा खाना खा रहे हैं, पूरे समाज के लिए एक अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत करती है। हजारों लोगों की व्यवस्था करने के लिए पुलिस प्रशासन और आश्रम के स्वयंसेवक सक्रिय रहे। समाचार लिखे जाने तक भी श्रद्धालुओं का आना लगातार जारी है। 

सायंकालीन सत्संग में विवेक चूड़ामणि पर प्रकाश डालते हुए साहित्यकार माधव कृष्ण ने कहा कि, विवेक उचित और अनुचित में भेद करने की क्षमता देता है। लेकिन इस क्षमता का उपयोग मनुष्यता की स्थापना में होना चाहिए। हमारी धमनियों में भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण का रक्त उबाल रहा है जिन्होंने हर उस स्थान पर हस्तक्षेप किया जहां अधर्म का राज्य था। भगवान राम ने ताड़ीघाट में ताड़का का वध कर और पम्पापुरी में सुग्रीव की सहायता कर विश्वविजेता रावण और महान बलशाली बाली को खुली चुनौती दी जबकि उनका उन दोनों से कोई व्यक्तिगत बैर नहीं था। माता अहिल्या और माता शबरी के साथ खड़ा होकर उन्होंने लोगों को उपेक्षितों और अपराधियों में अंतर करना सिखाया।  भगवान श्रीकृष्ण अपने समुद्र के आलीशान महल में पूर्ण वैभव के साथ आनंदित थे लेकिन जब दिल्ली की संसद में राजाओं के समक्ष एक अबला स्त्री का वस्त्र हरण हुआ और पांच धर्मात्माओं को सम्मानपूर्वक जीने के अधिकार से वंचित कर दिया गया, तब उन्होंने तुरंत अपने रथ के घरघर नाद से गुजरात से प्रस्थान करते हुए पूरे भारत को गूंजा दिया। धर्म का कार्य केवल माला जोना और अनुष्ठान करना नहीं, धर्म का कार्य अधर्म को चुनौती देकर उसका सर्वनाश करना है। धर्म का कार्य है अनाहूत अधर्म के राज्य में हस्तक्षेप करना।

बापू जी ने ज्ञानदीप पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, मानव धर्म का एकमात्र कार्य है निष्काम भाव से सत्य और न्याय के लिए खड़ा रहना। हमारा आचरण ही हमारा उत्तर है। कुछ ज्ञानियों ने हमारे महान गुरु के श्री गंगा आश्रम को अहीर मठ के रूप में प्रचारित कर कलंकित करने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने यह नहीं देखा कि अध्यात्म के मार्ग में केवल मनुष्यता देखी जाती है, जाति और धर्म नहीं। गंगा बाबा के गुरु परमहंस राममंगल दास जी जन्मना ब्राह्मण थे लेकिन अध्यात्म के क्षेत्र में उन्होंने अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी गंगा बाबा को चुना, और गंगा बाबा ने आश्रम में उनकी पुष्प समाधि और भव्य स्मारक बनवाया। मानव धर्म कभी भी जाति और धर्म।की संकीर्णता में विश्वास नहीं करता। वह केवल परमहंस बाबा गंगाराम दास के मार्ग पर चलते हुए अधर्म के अंधकार को अपने गुरु के वचनों के प्रकाश से समाप्त करते हुए सबको मनुष्यता के अनंत आकाश में तैरने के लिए आमंत्रित करता है।