डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसे रोगों का मंडराता खतरा, विभागीय सुस्ती से जनता बेहाल
गाज़ीपुर। जिले में संचारी रोगों से निपटने के लिए शासन और प्रशासन ने भले ही दस्तक अभियान और विशेष नियंत्रण कार्यक्रम चला रखे हों, लेकिन धरातल पर हालात बेहद चिंताजनक हैं। बीमारियों की रोकथाम के नाम पर सिर्फ बैठकों और निर्देशों का दिखावा हो रहा है। सीडीओ संतोष वैश्य द्वारा बार-बार नगर एवं ग्रामीण इलाकों में फॉगिंग और लार्वीसाइड दवाओं के छिड़काव के लिए दिए गए निर्देश अब तक सिर्फ फाइलों तक सीमित हैं।
पिछले दिनों आयोजित विशेष संचारी रोग नियंत्रण एवं दस्तक अभियान की समीक्षा बैठक में एक बार फिर सीडीओ ने साफ निर्देश दिए कि नगर निकाय, पंचायत विभाग, स्वास्थ्य विभाग और अन्य संबद्ध इकाइयों के बीच बेहतर तालमेल बनाकर मच्छरों की रोकथाम के लिए फॉगिंग और दवा छिड़काव किया जाए। लेकिन यूनाइटेड मीडिया की पड़ताल में सामने आया कि न तो फॉगिंग मशीनें मौके पर पहुंच रही हैं और न ही किसी मोहल्ले में दवा का छिड़काव किया जा रहा है।
बैठक में जिला मलेरिया अधिकारी मनोज कुमार ने विभागीय “उपलब्धियों” की झड़ी लगा दी। उन्होंने दावा किया कि विभाग ने शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में फॉगिंग एवं दवा छिड़काव का कार्य समयबद्ध ढंग से किया है। डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ और पाथ जैसी संस्थाओं की मॉनीटरिंग रिपोर्ट को भी बैठक में रखा गया, जिसमें सहयोगी प्रयासों की तारीफें की गईं।
लेकिन जब इन दावों की सच्चाई जानने के लिए मीडिया की टीम ने शहर के विभिन्न मोहल्लों, कस्बों और गांवों का दौरा किया, तो तस्वीर बिल्कुल उलट मिली। न तो लोगों ने फॉगिंग होते देखा और न ही दवा छिड़काव की कोई गाड़ी इलाके में पहुंची। लोग इस बात से नाराज दिखे कि सिर्फ कागज़ी कार्रवाई से बीमारियों का इलाज नहीं हो सकता।
शहर के विशेश्वरगंज, बड़ीबाग, रजदेपुर, भांवरकोल, सैदपुर, सदर और मुहम्मदाबाद जैसे ग्रामीण इलाकों में मच्छरों का जबरदस्त आतंक है। शाम होते ही घरों के अंदर और बाहर मच्छरों की फौज हावी हो जाती है। लोग मच्छरदानी, क्वॉइल और स्प्रे के भरोसे रह गए हैं। स्वास्थ्य विभाग की ओर से मच्छर नियंत्रण को लेकर कोई ठोस प्रयास नहीं किए जा रहे।
स्थानीय लोगों का कहना है, “हर साल बजट आता है, फॉगिंग के नाम पर दिखावा होता है, लेकिन यहां कभी कोई दवा छिड़कने नहीं आता। लोगों ने तो पिछले दो साल से किसी गाड़ी को आते नहीं देखा।”
डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसे मच्छर जनित रोगों का खतरा लगातार बढ़ रहा है। जिले में पिछले महीने ही डेंगू के संदिग्ध मामले सामने आए, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई सफल अभियान नहीं चलाया गया। उल्टा अधिकारियों ने इसे “मामूली बात” कहकर पल्ला झाड़ लिया।
नगर क्षेत्र के एक निजी चिकित्सको ने बताया, “डेंगू के कई मरीज हमारे पासआते रहते हैं, जिनमें प्लेटलेट्स की कमी और तेज बुखार की शिकायत मिलती है। अगर समय रहते मच्छर नियंत्रण पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह संख्या और बढ़ सकती है।”
स्वास्थ्य विभाग हर साल फॉगिंग और दवा छिड़काव के लिए लाखों रुपए का बजट खर्च करता है। टेंडर निकलते हैं, आपूर्ति होती है, भुगतान भी होता है, लेकिन ये सारी कवायद केवल कागज़ों पर ही सीमित रहती है। इसका लाभ ना तो आम जनता को मिलता है और ना ही बीमारियों की रोकथाम में कोई ठोस असर दिखाई देता है।
स्वास्थ विभाग के एक जिम्मेदार अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया हैं कि, “दवा खरीदी जाती है, गाड़ियां भी अलॉट होती हैं, लेकिन उन्हें कहीं भेजा नहीं जाता। केवल रिपोर्ट बनाकर भेज दी जाती है और विभाग समझता है कि उसने अपना काम पूरा कर लिया।”
प्रश्न यह उठता है कि बार-बार सीडीओ द्वारा निर्देश देने के बावजूद क्यों कार्य नहीं हो रहा? क्या स्वास्थ्य विभाग जानबूझकर लापरवाही कर रहा है, या फिर कोई बड़े स्तर की गड़बड़ी छुपाई जा रही है?
जानकारों की मानें तो यह एक सुनियोजित चूक है, जिसमें हर विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर खुद को पाक-साफ साबित करने में लगा है। लेकिन इस ‘समन्वयहीन समन्वय’ का खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है।
डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ और पाथ जैसी संस्थाएं अपने मॉनीटरिंग फीडबैक में भले ही कुछ क्षेत्रों में “संतोषजनक” कार्य की बात कर रही हों, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल विपरीत है। जब तक प्रशासन खुद मौके पर जाकर निरीक्षण नहीं करेगा और दोषियों पर सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक स्थिति में कोई सुधार संभव नहीं है।
स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर लोगों में नाराजगी लगातार बढ़ रही है। बताया गया कि कई जगहों पर लोगों ने स्थानीय प्रशासन से लिखित शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। सोशल मीडिया पर भी विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं।
रजदेपुर की रहने वाली अंजलि देवी (काल्पनिक नाम) कहती हैं, “अगर हम लोग अपनी गलियों में खुद दवा छिड़कवाएं, तो स्वास्थ्य विभाग का क्या काम है? हमारे बच्चे बीमार हो रहे हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है।”
पिछले कुछ वर्षों में यह देखने को मिला है कि संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम सिर्फ कागजों पर सीमित रह गया है। हर बार समीक्षा बैठक होती है, आंकड़े गिनाए जाते हैं, निर्देश दिए जाते हैं, लेकिन इनका पालन कहीं नहीं होता। अधिकारी भी जानते हैं कि उन्हें केवल “प्रेजेंटेशन” देना है, धरातल पर जाकर कुछ नहीं करना।
अब वक्त आ गया है कि जिले के जिम्मेदार अधिकारी सिर्फ बैठकों और आंकड़ों से ऊपर उठकर वास्तविक कार्रवाई करें। मच्छरों पर नियंत्रण और बीमारियों की रोकथाम के लिए फील्ड में जाकर काम करने की जरूरत है। अगर अब भी लापरवाही की गई, तो हालात बेकाबू हो सकते हैं, और इसकी कीमत आम जनता को अपने स्वास्थ्य से चुकानी पड़ेगी।